मरीज से दुर्व्यवहार के आरोप में डॉक्टर के निलंबन का आदेश हुआ पलट, मुख्यमंत्री ने हस्तक्षेप कर किया बहाल, विपक्ष और IMA भी हुए शामिल
Published on: June 09, 2025
By: BTNI
Location: Panji, India
गोवा के सरकारी चिकित्सा क्षेत्र में एक बड़ा प्रशासनिक विवाद सामने आया है। राज्य के स्वास्थ्य मंत्री विश्वजीत राणे और मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत के बीच मतभेद उस समय खुलकर सामने आए जब एक मरीज से दुर्व्यवहार के आरोप में स्वास्थ्य मंत्री ने गोवा मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल (GMC) के मुख्य चिकित्सा अधिकारी (CMO) डॉ. रुद्रेश कुट्टीकर को निलंबित कर दिया। इस फैसले के बाद चिकित्सा समुदाय, विपक्ष और आम नागरिकों की तीखी प्रतिक्रियाएं सामने आईं, जिसके बाद मुख्यमंत्री ने डॉक्टर को बहाल करने का आदेश दिया।
मामला उस समय गरमाया जब एक वरिष्ठ पत्रकार ने मंत्री से शिकायत की कि GMC के आपातकालीन वार्ड में डॉ. कुट्टीकर ने उनकी सास के साथ असभ्य व्यवहार किया। इस पर शनिवार को मंत्री ने अचानक अस्पताल का दौरा किया और मौके पर ही CMO को फटकार लगाते हुए निलंबित करने का आदेश दे दिया।

IMA और विपक्ष ने उठाई आवाज
इस निर्णय पर इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) गोवा शाखा ने तीव्र आपत्ति जताते हुए इसे “गैर-पेशेवर और तानाशाहीपूर्ण व्यवहार” बताया। IMA ने राज्य सरकार से निलंबन तुरंत रद्द कर निष्पक्ष जांच की मांग की। वहीं कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और रिवोल्यूशनरी गोअन्स पार्टी सहित विपक्षी दलों ने भी मंत्री की कार्यशैली की निंदा की।
मुख्यमंत्री ने किया हस्तक्षेप
रविवार को मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत ने पूरे मामले की समीक्षा की और मंत्री राणे से मुलाकात की। बैठक के बाद सावंत ने सोशल मीडिया मंच ‘X’ पर घोषणा की कि डॉक्टर रुद्रेश कुट्टीकर को निलंबित नहीं किया जाएगा और निष्पक्ष जांच होने तक उन्हें सेवा में बने रहने दिया जाएगा।
सावंत ने लिखा, “मैं गोवा के लोगों को आश्वस्त करना चाहता हूं कि GMCH के डॉक्टर निलंबित नहीं होंगे। हमारी सरकार समर्पित चिकित्सकों की सेवा को सराहती है और उच्च स्वास्थ्य मानकों को सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है।”
मंत्री राणे का पलटवार
विवाद के बीच मंत्री राणे ने स्पष्ट किया कि उन्होंने एक मरीज के अधिकारों की रक्षा के लिए कार्रवाई की थी और उसके लिए वह माफी नहीं मांगेंगे। उन्होंने कहा, “मैं मानता हूं कि मेरे लहजे में संयम हो सकता था, लेकिन मरीजों की गरिमा के लिए मैं खड़ा हूं। यह मेरा कर्तव्य है कि जहां करुणा की जगह अहंकार ले, वहां सख्त कदम उठाऊं।”
उन्होंने यह भी जोड़ा कि अधिकांश डॉक्टर ईमानदारी से काम करते हैं, लेकिन जब कोई चिकित्सक बुनियादी मानवीय व्यवहार भी न करे, तो कार्रवाई जरूरी हो जाती है।
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मामले की आगे की जांच
सरकार ने अब इस विवादास्पद मामले की निष्पक्ष जांच की घोषणा की है। सूत्रों के मुताबिक, यदि डॉक्टर पर लगाए गए आरोप सही पाए जाते हैं, तो अनुशासनात्मक कार्रवाई हो सकती है। वहीं दूसरी ओर, यदि मामला केवल राजनीतिक दबाव और गलतफहमी का निकला, तो मंत्री की आलोचना और तेज हो सकती है।
क्या कहता है यह विवाद?
इस घटना ने यह स्पष्ट कर दिया है कि प्रशासनिक शक्ति और मानवीय संवेदनाओं के बीच संतुलन बनाना कितना जरूरी है। साथ ही, यह मामला यह भी दर्शाता है कि स्वास्थ्य सेवाओं में पारदर्शिता, जिम्मेदारी और संवाद का स्तर बहुत अहम है — न सिर्फ डॉक्टरों और मरीजों के बीच, बल्कि सरकार के भीतर भी।