डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने 1952 में 8 साल के गोलू को गोद लिया और नाम दिया ‘बसन्त’; आज उसी बसन्त से राष्ट्रपति मुर्मु ने कहा, “तुम मेरे भी पुत्र हो”
Published on: November 20, 2025
By: BTNI
Location: Ambikapur, India
छत्तीसगढ़ के सरगुजा जिले में आज इतिहास ने जैसे अपने आपको दोहराया। जनजातीय गौरव दिवस के भव्य आयोजन में शामिल होने आईं राष्ट्रपति श्रीमती द्रौपदी मुर्मु जब म promotions पर पहुंचीं, तो उनके सामने खड़े थे ८१ वर्षीय बसन्त पण्डो – वही बच्चा जिसे १९५२ में भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने गोद में उठाया था और जिन्हें अपना दत्तक पुत्र घोषित करते हुए नाम दिया था ‘बसन्त’।
कार्यक्रम स्थल पर जैसे ही बसन्त पण्डो को राष्ट्रपति जी के सामने लाया गया, पूरा पंडाल भावुक हो उठा। राष्ट्रपति मुर्मु ने बसन्त पण्डो को गले लगाया, उनके कंधों पर खुद अपने हाथों से शॉल उढ़ाई और भर्राई आवाज में कहा, “बसन्त बेटा, तुम मेरे भी पुत्र हो। तुम्हें देखकर लग रहा है जैसे डॉ. राजेंद्र प्रसाद जी का आशीर्वाद आज भी जीवित है।”बसन्त पण्डो की आँखें नम थीं। उन्होंने बताया, “मैं उस दिन को आज भी याद करता हूँ जब बाबूजी (डॉ. राजेंद्र प्रसाद) ने मुझे गोद में उठाया और कहा था – ‘आज से तुम मेरा बेटा बसन्त हो।’ आज फिर एक राष्ट्रपति माँ ने मुझे अपना पुत्र कहा – मेरे लिए इससे बड़ा सौभाग्य क्या हो सकता है?”१९५२ की वो तारीख थी १५ दिसंबर।

अंबिकापुर आए डॉ. राजेंद्र प्रसाद को जब स्थानीय पण्डो जनजाति के लोगों ने घेरकर अपना दुखड़ा सुनाया, तो उन्होंने ८ साल के गोलू नाम के बच्चे को गोद में उठाया और घोषणा की – “ये बच्चा आज से मेरा दत्तक पुत्र है। इसका नाम बसन्त होगा।” उसी दिन से पण्डो जनजाति को ‘राष्ट्रपति दत्तक पुत्र समाज’ के नाम से विशेष पहचान मिली।राष्ट्रपति मुर्मु ने मंच से पूरे देश को संबोधित करते हुए कहा, “आज मुझे लगा कि मैं सिर्फ़ राष्ट्रपति नहीं, एक माँ बनकर आई हूँ। बसन्त मेरे बड़े भाई जैसे हैं। ये रिश्ता १९५२ से चला आ रहा है और आज और मजबूत हो गया।
”मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने इस मुलाकात को “छत्तीसगढ़ के लिए स्वर्णिम पल” बताया। समारोह में मौजूद हजारों जनजातीय भाई-बहन बार-बार “भारत माता की जय” और “राष्ट्रपति माताजी की जय” के नारे लगा रहे थे।बसन्त पण्डो ने अंत में कहा, “मैंने दो राष्ट्रपतियों का स्नेह पाया – एक ने मुझे नाम दिया, दूसरी ने मुझे माँ का प्यार। अब शांतिपूर्वक इस दुनिया से विदा लेने की तैयारी है।”
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आज अंबिकापुर ने ७३ साल पुराना वो फोटो फिर से जीवंत कर दिया – जिसमें एक राष्ट्रपति एक बच्चे को गोद में उठाए हैं। बस इस बार गोद में उठाने वाली खुद एक माँ बनीं राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु।
सचमुच, कुछ रिश्ते समय की सीमाओं से परे होते हैं।



