Published on: May 05, 2025
By: BTI
Location: Puri/Kolkata, India
पुरी के प्रसिद्ध श्रीजगन्नाथ मंदिर की पवित्र नीम लकड़ी से दीघा (पश्चिम बंगाल) के एक मंदिर में मूर्तियाँ बनाए जाने के आरोपों ने नया विवाद खड़ा कर दिया है। मंदिर प्रशासन ने इस संबंध में वरिष्ठ सेवक रामकृष्ण दासमहापात्र को कारण बताओ नोटिस जारी किया है और 7 दिनों के भीतर जवाब देने को कहा है।
श्रीजगन्नाथ मंदिर प्रशासन ने चेतावनी दी है कि यदि सेवक द्वारा संतोषजनक उत्तर नहीं दिया गया, तो उनके खिलाफ श्रीजगन्नाथ मंदिर अधिनियम-1955 के तहत अनुशासनात्मक कार्रवाई की जाएगी।
क्या है मामला?
बताया जा रहा है कि 2015 में हुए नवकलेवर अनुष्ठान के दौरान बची हुई नीम लकड़ी को सेवक दासमहापात्र ने दीघा ले जाकर वहां नए मंदिर में मूर्तियाँ बनवाने में उपयोग किया। यह दावा स्वयं उन्होंने पश्चिम बंगाल के कुछ मीडिया चैनलों में किया था। हालांकि बाद में उन्होंने इन आरोपों से इनकार करते हुए कहा कि उनका बयान मॉर्फ किया गया या गलत तरीके से प्रस्तुत किया गया।
“मैंने ऐसा कोई बयान नहीं दिया। मैंने सिर्फ यह कहा था कि दीघा मंदिर में नीम की लकड़ी से मूर्तियाँ बनाई गई हैं,” — रामकृष्ण दासमहापात्र
राजनीतिक प्रतिक्रिया और जांच
मामले के तूल पकड़ने के बाद ओडिशा के कानून मंत्री पृथ्वीराज हरिचंदन ने श्रीजगन्नाथ मंदिर प्रशासन को मामले की जांच करने का आदेश दिया है। वहीं, पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा दीघा मंदिर को ‘जगन्नाथ धाम’ कहे जाने और वहां ‘ब्रह्म’ स्थापना की खबरों ने विवाद को और बढ़ा दिया है।
‘ब्रह्म’ श्रीजगन्नाथ की आत्मा मानी जाती है जिसे हर 12 या 19 साल में ‘नवकलेवर’ अनुष्ठान के तहत पुराने विग्रह से नए में स्थानांतरित किया जाता है। अब सवाल उठाए जा रहे हैं कि क्या दीघा मंदिर में भी यह प्रक्रिया अपनाई गई थी?
मंदिर प्रशासन यह भी जानना चाहता है कि “दारु गृह” (लकड़ी भंडार गृह) की चाबियाँ किसके पास हैं और पवित्र लकड़ी वहां से कैसे बाहर गई।
ममता बनर्जी की सफाई
इस विवाद पर पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी बयान दिया है। उन्होंने कहा:
“हम पुरी के मंदिर का सम्मान करते हैं और जगन्नाथ धाम का भी। देश में काली मंदिर और गुरुद्वारे हर जगह हैं। तो मंदिर तो हर जगह हैं… फिर इस मुद्दे पर इतना गुस्सा क्यों?”
निष्कर्ष
पुरी श्रीजगन्नाथ मंदिर की पवित्र परंपराओं और मान्यताओं से जुड़ा यह मामला अब धार्मिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक स्तर पर चर्चा का विषय बन चुका है। आने वाले दिनों में यह देखना अहम होगा कि सेवक का जवाब कैसा होता है और मंदिर प्रशासन इस पर क्या अंतिम फैसला लेता है।