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पहलगाम में हिंदुओ के नरसंहार पर दिग्गी राजा के भाई का रुख कही चिंगारी तो नही

लक्ष्मण सिंह के खुले विचार व सामान्य जनचर्चा के बाद का आलेख

Published on: April 26, 2025
By: Purushottam Tiwari
Location: Rajnandgaon, India

Barbarika Truth News India-image= June 13, 2025

पहलगाम आतंकी हमले (22 अप्रैल 2025) के बाद कांग्रेस नेताओं राहुल गांधी, प्रियंका गांधी वाड्रा, मल्लिकार्जुन खड़गे और अन्य के बयानों और रुख को लेकर कुछ कांग्रेसी कार्यकर्ताओं और समर्थकों में असंतोष की भावना देखी जा रही है। मध्यप्रदेश के प्रमुख कांग्रेसी नेता व विश्व प्रसिद्ध धर्मनिरपेक्ष नेता दिग्विजय सिंह उर्फ दिग्गी राजा के भाई लक्ष्मण सिंह ने जिस प्रकार से अपने निर्वाचन क्षेत्र राघोगढ में कैमरे के सामने खुलकर इस मामले में राहुल गांधी व उनके जीजाजी राबर्ट वाड्रा को दो टूक कहा है कि सोच समझकर बोले उससे तो यही लगता है कि कहीं ये काँग्रेस के भीतर हाईकमान के हिंदुत्व विरोधी रुख के खिलाफ चिनगारी तो नहीं है। लक्ष्मण सिंह ने एक प्रकार से राहुल गांधी को खुले रुप में हिदायत देते हुए कहा है कि वे कैमरे के सामने जो कुछ कह रहे है वह सोच समझकर बोल रहे है और उनकी पार्टी चाहे तो इस पर उन्हें पार्टी से निकाल देवे। लोगों का यह मानना है कि शायद ये वे नहीं बल्कि उनके अंदर का हिंदुत्व या उनकी अंतर्आत्मा बोल रही है।
इस हमले में 26 लोगों की मौत हुई। मारने वालों ने पर्यटकों से उनका धर्म पूछा,कलमा पढने कहा और लिंग देखकर कि खतना वाला है कि नहीं इसका खुलासा किया और फिर उन्हे उनके ही मासूम बच्चों बीबी या रिश्तेदारों के सामने ही गोली मार दी। आम कांग्रेसी जिसे कांग्रेस की पंचायत से लेकर किसी भी स्तर तक की टिकिट नहीं चाहिये वो ये सोच कर परेशान है कि उनकी पार्टी के बडे नेता,राहुल,खडगे,दिग्गी राजा,वगैरह वगैरह आखिर क्यों नहीं बोल पा रहे है कि आतंकियों ने पर्यटकों को धर्म पूछ पूछ कर मारा।

  1. राहुल गांधी का रुख और बयान
    बयान: राहुल गांधी ने हमले की निंदा करते हुए कहा कि यह “दिल दहला देने वाला” और “कायराना” कृत्य है। उन्होंने गृह मंत्री अमित शाह, जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष तारिक कर्रा से बात कर स्थिति की जानकारी ली। उन्होंने सोशल मीडिया पर लिखा, “पीड़ित परिवारों को न्याय और हमारा पूरा समर्थन मिलना चाहिए।”
    विवाद का बिंदु:
    कुछ कांग्रेसी कार्यकर्ताओं और आम लोगों का मानना है कि राहुल गांधी का बयान सामान्य और औपचारिक था, जिसमें भावनात्मक गहराई या आक्रामकता की कमी थी, जो इस तरह के संवेदनशील मौके पर अपेक्षित होती है। उनकी बॉडी लैंग्वेज (जैसा कि कुछ न्यूज़ चैनलों और सोशल मीडिया पर चर्चा में देखा गया) को कुछ लोगों ने निष्क्रिय और कम प्रभावी माना, खासकर जब देश में गुस्से का माहौल था।
    असंतोष: कुछ कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को लगता है कि राहुल गांधी का यह रुख उनकी नेतृत्व क्षमता पर सवाल उठाता है, और वे इसे पार्टी के लिए नुकसानदायक मान रहे हैं। खासकर स्थानीय स्तर पर, कार्यकर्ताओं को जनता के सामने जवाब देना मुश्किल हो रहा है।
  2. प्रियंका गांधी वाड्रा का बयान
    बयान: प्रियंका गांधी ने हमले को “कायराना और शर्मनाक” बताया और कहा, “निहत्थे-निर्दोष नागरिकों को निशाना बनाना मानवता के खिलाफ अपराध है। पूरा देश आतंकवाद के खिलाफ एकजुट है।”
    3 –विवादास्पद बिंदु: प्रियंका का बयान भी निंदा तक सीमित रहा, और इसमें कोई ठोस सुझाव या सरकार पर तीखा हमला नहीं था। कुछ कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को लगता है कि प्रियंका, जो आमतौर पर भावनात्मक और प्रभावी बयानबाजी के लिए जानी जाती हैं, इस बार अपेक्षाकृत कम प्रभावशाली रहीं। उनकी बॉडी लैंग्वेज को लेकर कोई विशेष टिप्पणी नहीं मिली, लेकिन उनके बयान को कुछ लोगों ने रटे-रटाए और कमजोर माना।
    रॉबर्ट वाड्रा का बयान: प्रियंका के पति रॉबर्ट वाड्रा का बयान सबसे ज्यादा विवादास्पद रहा। उन्होंने कहा, “यह हमला सरकार के हिंदुत्व की बात करने और मस्जिदों पर सर्वे कराने की वजह से हुआ, जिससे मुस्लिम असहज और कमजोर महसूस कर रहे हैं।” इस बयान ने बीजेपी को कांग्रेस पर हमला करने का मौका दिया, और कई कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को यह बयान पार्टी की छवि के लिए हानिकारक लगा। बीजेपी नेताओं जैसे निशिकांत दुबे और प्रेम शुक्ला ने इसे “आतंकवाद को सही ठहराने” की कोशिश बताया, जिससे कांग्रेस को स्थानीय स्तर पर जनता के गुस्से का सामना करना पड़ा।

4 प्रतिक्रिया:

खड़गे का बयान अपेक्षाकृत संतुलित और ठोस था, लेकिन कुछ कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को लगता है कि उनकी आवाज में वह प्रभावशीलता नहीं थी, जो इस तरह के राष्ट्रीय संकट में अपेक्षित होती है। उनकी बॉडी लैंग्वेज को लेकर कोई विशेष चर्चा नहीं हुई, लेकिन उनकी उम्र (82 वर्ष) और हाल के संसदीय विवादों (जैसे अमित शाह के साथ आंबेडकर मुद्दे पर टकराव) के कारण कुछ कार्यकर्ता उनके नेतृत्व को कम प्रभावी मान रहे हैं।

5 – कार्यकर्ताओं की शर्मिंदगी:
कई कांग्रेसी कार्यकर्ता, खासकर ग्रामीण और छोटे शहरों में, रॉबर्ट वाड्रा के बयान से सबसे ज्यादा परेशान हैं। सोशल मीडिया और स्थानीय चर्चाओं में इसे “आतंकवाद को हिंदू-मुस्लिम मुद्दे से जोड़ने” की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है, जिसने पार्टी की छवि को नुकसान पहुंचाया।

6 – आम लोगों के सामने शर्मिंदगी —

कार्यकर्ताओं को लगता है कि जब पूरा देश आतंकवाद के खिलाफ एकजुट है, तब इस तरह के बयान पार्टी को “राष्ट्रविरोधी” या “तुष्टिकरण की राजनीति” करने वाली साबित करते हैं, जिससे उन्हें स्थानीय स्तर पर जवाब देना मुश्किल हो रहा है। कुछ कार्यकर्ता यह सवाल उठा रहे हैं कि वे ऐसी पार्टी में क्यों हैं, जो बार-बार इस तरह के विवादों में फंस जाती है।

7 – सोशल मीडिया और जनता की प्रतिक्रिया —

सोशल मीडिया पर, खासकर X पर, रॉबर्ट वाड्रा के बयान की तीखी आलोचना हुई। कुछ यूजर्स ने इसे “कांग्रेस की असली मानसिकता” बताया, जबकि अन्य ने इसे “आतंकवाद को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश” करार दिया।

पहलगाम हमले के बाद कांग्रेस नेतृत्व के बयानों को कुछ हद तक औपचारिक और कम प्रभावी माना गया, खासकर रॉबर्ट वाड्रा के विवादास्पद बयान ने स्थिति को और जटिल कर दिया। कार्यकर्ताओं का असंतोष इस बात से भी है कि पार्टी बार-बार ऐसे विवादों में फंस जाती है, जिससे उनकी विश्वसनीयता प्रभावित होती है। स्थानीय स्तर पर कार्यकर्ता जनता के गुस्से और सवालों का सामना कर रहे हैं, जिससे कुछ लोग पार्टी में अपनी भूमिका पर सवाल उठा रहे हैं।
हालांकि, यह ध्यान देना जरूरी है कि यह असंतोष पूरे कार्यकर्ता समूह का प्रतिनिधित्व नहीं करता। कुछ कार्यकर्ता अभी भी गांधी परिवार और खड़गे के नेतृत्व में विश्वास रखते हैं, लेकिन पार्टी को इस तरह के संकटों में अधिक संवेदनशील और रणनीतिक रुख अपनाने की जरूरत है।

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