ऋषि मिश्रा को मिला “दिव्यांग रत्न सम्मान”
Published on: December 02, 2025
By: बर्बरीक ट्रूथ डेस्क
Location: Rajnandgaon, India
विश्व विकलांग (दिव्यांग) दिवस पर मेरठ में आयोजित राष्ट्रीय स्तरीय सम्मान समारोह में जब मंच से “दिव्यांग रत्न सम्मान — वर्ष 2025” के लिए छत्तीसगढ़ के युवा ऋषि मिश्रा का नाम पुकारा गया, तो सभागार तालियों से गूंज उठा। भीड़ के बीच एक मुस्कुराता हुआ चेहरा… व्हीलचेयर पर बैठे वह युवा आज देश भर के दिव्यांगजनों के लिए प्रेरणा बन चुके हैं।
80% दिव्यांगता के साथ जीवन की कठिन राह पर चलते हुए भी उन्होंने अपनी शारीरिक कमी को कभी कमज़ोरी नहीं बनने दिया। “दिव्यांगता मेरी सीमा नहीं, मेरी शक्ति है” — यह वाक्य उनका जीवन मंत्र है। पैरा खेल के क्षेत्र और दिव्यांग कल्याण के लिए किए गए उत्कृष्ट कार्यों के कारण आज ऋषि मिश्रा राष्ट्रीय स्तर पर सम्मानित व्यक्तित्व के रूप में उभर रहे हैं।
छत्तीसगढ़ की मिट्टी से उठकर राष्ट्रीय मंच तक पहुंचने का यह सफर आसान नहीं था। संघर्ष, असफलताएँ, उपेक्षा… सब कुछ देखा, पराज़ित तो नहीं हुए। आज वही ऋषि मिश्रा मेरठ के अटल सभागार, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय में सम्मान प्राप्त करते हुए सिर्फ एक व्यक्ति नहीं, बल्कि करोड़ों दिव्यांगजनों के सपने और उम्मीदों का प्रतीक बनकर चमक उठे।
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इस सम्मान ने न केवल उनकी प्रतिभा को सलाम किया है बल्कि यह भी संदेश दिया है कि —
“क्षमता शरीर में नहीं, संकल्प में बसती है।”
ऋषि मिश्रा को सम्मान प्राप्त होने पर छत्तीसगढ़ से बधाईयों का तांता लग गया।
श्री हेमंत तिवारी समाजसेवी, यामिनी साहू (विशेष शिक्षिका), श्री सोन कुमार सिन्हा (प्रदेश उपाध्यक्ष – छत्तीसगढ़ जर्नलिस्ट यूनियन, डोंगरगढ़), बी.पी. मिश्रा (सेवानिवृत्त थाना प्रभारी, साजा), सक्षम भारत – समर्थ भारत टीम राजनांदगांव एवं छत्तीसगढ़ सहित अनेक गणमान्य नागरिकों ने हृदय से शुभकामनाएं प्रेषित की हैं।
दिव्यांग रत्न सम्मान के साथ ऋषि मिश्रा ने एक बार फिर सिद्ध कर दिया कि इच्छाशक्ति हो तो कोई भी चुनौती बड़ी नहीं होती।
आज पूरा प्रदेश गर्व से कह रहा है —
“ऋषि, तुमने छत्तीसगढ़ का सिर ऊँचा किया है।”
यह सम्मान केवल एक व्यक्ति की जीत नहीं…
यह हर उस दिव्यांग के सपने की जीत है जो हार नहीं मानता।



