23 नवंबर देशव्यापी ‘प्रतिरोध दिवस’ मनाने का ऐलान
Published on: November 22, 2025
By: (Barbarik Truth – National Lead Story) Location- New Delhi / Bastar
कुख्यात माओवादी कमांडर माडवी हिड़मा की मौत के बाद नक्सली संगठनों ने एक बड़ा ऐलान किया है। माओवादी केंद्रीय कमेटी के प्रवक्ता अभय ने जारी प्रेस नोट और सोशल मीडिया पोस्ट में दावा किया है कि हिड़मा की मुठभेड़ फर्जी थी, और 23 नवंबर को पूरे भारत में राष्ट्रीय “प्रतिरोध दिवस” मनाने की घोषणा की है।
आरोप और माओवादी का रुख —–
माओवादी प्रेस नोट में कहा गया है कि हिड़मा को इलाज कराने के नाम पर विजयवाड़ा ले जाया गया था, जहां उन्हें हिरासत में पकड़ा गया।
संगठन का आरोप है कि हिड़मा और उनके साथियों को “सरेंडर कराने” के झांसे में बंदी बनाया गया था, और बाद में उन्हें मारा गया।
माओवादी प्रेस नोट में दावा किया गया है कि हिड़मा की हत्या को जंगल में छोड़े जाने के बाद ऐसा दिखाया गया कि यह मुठभेड़ थी।
संगठन ने यह भी आरोप लगाया है कि यह केवल एक ऑपरेशन नहीं, बल्कि उनके शीर्ष नेतृत्व को खत्म करने की “रणनीति” है।
23 नवंबर का “प्रतिरोध दिवस”
माओवादी प्रवक्ता अभय के लेटर / प्रेस नोट में 23 नवंबर को देशव्यापी प्रतिरोध दिवस के रूप में मनाने का आह्वान किया गया है।
इस दिन, माओवादी संगठन ने जनविरोधी नीतियों, कथित फर्जी मुठभेड़ों और “लोकतंत्र हनन” के खिलाफ व्यापक विरोध-कार्यक्रम आयोजित करने का प्रस्ताव रखा है।
प्रेस नोट में, नक्सली लगातार यह संदेश दे रहे हैं कि हिड़मा की हत्या केवल उनके व्यक्तिगत सफाए का हिस्सा नहीं है, बल्कि आदिवासी एवं माओवादी आंदोलन की पुस्त पर हमला है।
सुरक्षा बलों का रुख और स्थिति
सुरक्षा एजेंसियों ने माओवादी आरोपों को खंडन किया है, कहा है कि हिड़मा को मार गिराने वाला यह ऑपरेशन “वैध और मजबूत खुफिया इनपुट” पर आधारित था।
एनकाउंटर 18 नवंबर को हुआ था; सुरक्षा बलों के अनुसार, हिड़मा के अलावा छः माओवादी मारे गए थे।
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इसके बाद, माओवादी घोषणा के बाद नक्सल प्रभावित इलाकों में सुरक्षा अलर्ट बढ़ा दिया गया है।
पृष्ठभूमि और राजनीतिक आयाम —–
हिड़मा माओवादी संगठन में एक लंबा और जानदार नेतृत्व चेहरा था।
उनकी मौत को माओवादी नेतृत्व की कमर तोड़ने की कोशिश के रूप में देखा जा रहा है।
इस घटना का राजनीतिक महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है क्योंकि नक्सल समस्या राष्ट्रीय स्तर पर अभी भी एक गंभीर सुरक्षा चुनौती है।
कुछ विश्लेषकों के मुताबिक, माओवादी संगठन इस प्रतिरोध दिवस के जरिये अपनी राह और विरासत को फिर से मजबूत करना चाह रहा है, और लोगों के बीच सहानुभूति जुटाना चाहता है।
निष्कर्ष और संभावित असर —–
इस घोषणा ने नक्सल-सरकार टकराव को फिर से राष्ट्रीय ध्यान में ला दिया है।
यदि प्रतिरोध दिवस के आह्वान का असर होता है, तो यह न सिर्फ नक्सल हिंसा में इजाफा कर सकता है, बल्कि स्थानीय प्रशासन और सुरक्षा एजेंसियों के लिए बड़ी चुनौती खड़ी कर सकता है।
दूसरी ओर, यह भी देखा जाना होगा कि सरकार और सुरक्षा बल इस स्थिति को कैसे नियंत्रित करते हैं — चाहे वह राजनीतिक संवाद हो, कड़ी कार्रवाई हो, या खुफिया निगरानी।


