दिल्ली पुलिस ने SC में किया दावा
पुलिस ने कोर्ट में शरजील इमाम के कथित भड़काऊ भाषणों का वीडियो भी प्रस्तुत किया है।
Published on: November 21, 2025
By: BTNI
Location: New Delhi, India
दिल्ली पुलिस ने सुप्रीम कोर्ट में 2020 के उत्तर-पूर्वी दिल्ली दंगों को सिर्फ हिंसा नहीं, बल्कि “देश की संप्रभुता पर हमला” और “शासन बदलने की सोची-समझी साजिश” करार देते हुए उमर खालिद, शरजील इमाम समेत कई एक्टिविस्ट्स की जमानत याचिकाओं का कड़ा विरोध किया है।
पुलिस की दलील के अनुसार, ये दंगे अचानक नहीं भड़के थे, बल्कि पूर्व नियोजन के तहत orchestrated थे। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत में कहा कि इन संघर्षों का मकसद सिर्फ प्रदर्शन नहीं था, बल्कि “सरकार बदलने” के इरादे भी थे।
दिल्ली पुलिस ने SC में यह भी तर्क दिया कि “बुद्धिजीवी आतंकवादी”, यानी पढ़े-लिखे व्यक्ति, जमीन पर काम करने वाले सक्रिय आतंकवादियों से भी अधिक खतरनाक होते हैं। उन्होंने हाल ही में पकड़े गए सफेद-कॉलर आतंकवाद मॉड्यूल को उदाहरण के तौर पर पेश किया है, जहां शिक्षा प्राप्त लोग अराजक गतिविधियों में शामिल थे।
पुलिस ने कोर्ट में शरजील इमाम के कथित भड़काऊ भाषणों का वीडियो भी प्रस्तुत किया है।
इनमें उन्होंने “चिकन-नेक” (स्ट्रैटेजिक क्षेत्र) तक की बात की थी, और कहा था कि यदि पूरा रेल मार्ग रोका जाए, तो वह असम को “काटने” की जिम्मेदारी ले सकते हैं। इसके अलावा, इमाम ने आर्टिकल 370, ट्रिपल तलाक, CAA और NRC जैसे संवेदनशील मुद्दों पर युवाओं को सरकार के कदमों के खिलाफ उकसाया, ऐसा आरोप पुलिस ने लगाया है।
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पुलिस का यह भी कहना है कि दंगे सिर्फ प्रदर्शन का परिणाम नहीं थे बल्कि “रिजीम चेंज ऑपरेशन” का हिस्सा थे — यानी एक बहुत बड़े और संगठित राजनीतिक मकसद के साथ किया गया था। उन्होंने यह भी दावा किया है कि हिंसा को वैश्विक स्तर पर भारत की छवि खराब करने और देश को अंतरराष्ट्रीय मंच पर हाशिये पर लाने के लिए भड़काया गया था।
कौन-कौन आरोपी हैं:
उमर खालिद, पूर्व JNU छात्र, जिन पर UAPA (गैरकानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम) और अन्य आरोप हैं।
शरजील इमाम, जिन पर “मास्टरमाइंड” होने के आरोप लगाये गये हैं।
अन्य आरोपी: मीरान हैदर, गुल्फिशा फातिमा, शीफा-उर-रहमान आदि।
दूसरी ओर, आरोपियों की दलीलें भी कोर्ट में सामने आई हैं। उनका कहना है कि शांतिपूर्ण विरोध करना अपराध नहीं है, और पांच साल से भी अधिक जेल में रहने के बाद उनकी न्यायसंगत सुनवाई का अधिकार सुनिश्चित किया जाना चाहिए।


