अनेक लोगों को अफसोस कि काश उनका नाम इन वार्डों की मतदाता सूचि में होता
(बटाई का सुनकर गिरिश देवांगन को भी दिन में तारे नजर आने लगेंगे)
राजनांदगांव (BTI) -राजनांदगांव नगर निगम चुनाव में आम लोगों को जितनी रुचि महापौर कौन बनेगा को लेकर है उससे कहीं अधिक रुचि लोगों में शहर कांग्रेस के दो दिग्गज अजातशत्रु क्रमशः अध्यक्ष कुलबीर छाबड़ा वार्ड नंबर 24 तथा हफीज खान के वार्ड नंबर 13 के चुनाव तथा शहर के मध्य वार्ड नंबर 37 के चुनाव को लेकर है। सूत्रों के अनुसार इनमें से दो वार्डों मे इतनी बटाई हुई है कि गिरीश देवांगन को भी सुनकर दिन में तारे नजर आने लगेंगे।
जहां तक कुलबीर छाबड़ा के वार्ड का प्रश्न है वे विगत पांच चुनाव में रिकार्ड मतों से इस वार्ड से चुनाव जीतते आए है।
वे पिछले 5 वर्षों से शहर कांग्रेस के अध्यक्ष भी है और शहर कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में उनकी काफी सक्रियता रही है। यह भी माना जा रहा था कि इन्हें ही नगर निगम में महापौर की टिकट मिलेगी और वे चुनाव में बीजेपी को कड़ी टक्कर देकर जीतेंगे लेकिन उन्हें टिकट नहीं मिली और उन्हें फिर से पार्षद का टिकट थमा दिया गया।
पीसीसी ने उन्हे शहर कांग्रेस अध्यक्ष पद से टेंपरेरी कार्य मुक्त करते हुए उनके स्थान पर कार्यवाहक शहर कांग्रेस अध्यक्ष रमेश डाकलिया को बनाया गया।
कुलबीर की अपने वार्ड में इतनी लोकप्रियता थी कि वे हर बार सर्वाधिक मतों से जीतकर रिकार्ड बनाते रहे है लेकिन छाबड़ा इस समय मुश्किलों से घिरते नजर आए।
भारतीय जनता पार्टी ने इस समय उन्ही के स्वजातीय बंधु सैंकी बग्गा को जो ऑल इंडिया रैंक की सर्विस से त्यागपत्र देकर अपनी निजी व्यवसाय में संलग्न है उन्हे प्रत्याशी बनाया है। वे भाजपा से जुडे हुए है।
इस चुनाव में इस वार्ड में जो मुफ्त की रेवाड़ीरूपी प्रसाद बंटा है उससे अनेक वार्ड के लोग अफसोस व्यक्त कर रहे हैं कि उनका नाम इस वार्ड की वोटर लिस्ट में क्यों नहीं है? काश होता तो हम भी तर जाते। यहां की कथा या कहो व्यथा बताने के लिए इससे ऊपर बोलने की जरूरत नहीं है कि इस वार्ड में प्रत्याशियों ने कितना कितना खर्च किया है।
यहां प्रत्याशी के खर्च के बारे में तो यह कहा जाता है कि 14 माह पूर्व पूर्व मुख्यमंत्री डाक्टर रमन सिंह के विरुद्ध चुनाव लडने वाले गिरीश देवांगन को भी दिन में तारे नजर आने लगेंगे। यही कारण है की बातें छिपाई नहीं छिपती और यह बात सामने आ ही गई। यह बहुजन चर्चा का विषय है और गली गली में ये चर्चे मशहूर हो चुके है।
क्या अपने वार्ड में लोकप्रियता के सर्वोच्च शिखर पर पहुंचे छाबड़ा इस समय चुनाव नहीं जीत पाएंगे, क्या उनका विजयरथ यहीं थम जाएगा यह यक्ष प्रश्न आज जनता की प्रथम वरीयता बन चुका है जिसका खुलासा कल 15 फरवरी को होगा।
इसी प्रकार से कांग्रेस के दूसरे अजातशत्रु है हफीज खान जिन्होंने अपने वार्ड को संभल रखा हुआ है और यही कारण है कि यहां से ये आंख बंद करके लगातार चुनाव जीतते आए हैं। उनका यहां इतना दबदबा या प्रभाव है कि गत चुनाव में उन्होंने अपने एक सहयोगी समद खान को चुनाव मैदान में उतारा था और वे भी भारी मतों से चुनाव जीत गए थे। यहां सिर्फ एक ही नाम चलता है भाई का। अभी तक यहां इनके अलावा कोई और नहीं जीत पाया है। इस बार इनके गौरीनगर क्षेत्र में मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय की जनसभा भी भाजपा ने आयोजित की थी। यहां भी भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी उन्हें कड़ी टक्कर दे रहे हैं लेकिन यहां ऐसी कोई लालच या जनता के बीच कुछ बांटे जाने के वैसे खुले समाचार नहीं मिले जितने अन्य स्थनों के मिले।
अब बात करते है शहर की बीचो-बीच स्थित वार्ड नंबर 37 की जहां आधे से अधिक मारवाडी निवासरत् है। यहां आधे से अधिक वोटर मध्यम वर्गीय तथा गरीब तबके के है। डबरी पारा एक स्लम बस्ती भी यहां है जिसमें लगभग 300 वोटर्स है।
लालच के हथियार का यहां जबरदस्त व रिकार्ड ब्रेक उपयोग हुआ है और यहां भी आसपास के वार्ड के लोग या जो कुछ गरीब तबके के लोग हैं अफसोस कर रहे हैं कि उनका नाम वार्ड नंर 37 की वोटर लिस्ट में नाम क्यों नहीं था तात्पर्य कि यहां के वोटर्स ने बहती गंगा में हाथ धोया।अब मूल में आया जाए तो ऐसा क्या कारण है कि इन वार्डो में लालच के हथियार का खुला एवं जबरदस्त उपयोग हुआ है।
कारण यह कहा जा सकता है कि यहां जो है कुलबीर के वार्ड में और सदर बाजार या तथाकथित मारवाड़ी बाहुल्य वार्ड में कांग्रेस व भाजपा प्रत्याशी लक्ष्मी पुत्र है और मां महालक्ष्मी की इन पर भरपूर कृपा है।
इनके लिए सामाजिक प्रतिष्ठा व रुतबा प्रमुख मुद्दा रहा है। ये किसी भी कीमत में यह चाहते थे कि उनके पास पद का सम्मान या तमगा हो बाकी ईश्वर का दिया सब कुछ है। जनप्रतिनिधि का पद मिल जाए तो इसमें एक और तमगा लग जाएगा वहीं जिस फार्मुले से इन्हे पार्षद टिकिट मिली है उसी फार्मूले से निगम चेयरमेन के पद के ताले की चाबी भी खुल सकती है और यह संभव हो गया तो फिर यह तो सोने में सुहाग वाली बात हो जाएगी।
हाल फिलहाल तो राजनांदगांव के राजनीति में रुचि लेने वालों सहित आमजनों में कौन बनेगा महापौर नहीं बल्कि यह जानने की ज्यादा उत्सुकता है कि क्या होगा इन अजात शत्रुओं का चुनाव परिणाम। क्या ये फिर बन पाएंगे पार्षद। क्या जैनम बैद का वार्ड नंबर 37 में जादू चल जाएगा।