‘नमक हराम’ के क्लाइमेक्स विवाद ने खत्म की बॉलीवुड के दो दिग्गजों की ऑन-स्क्रीन साझेदारी
अमिताभ बच्चन और राजेश खन्ना
Published on: July 05, 2025
By: BTNI
Location: Mumbai, India
हिंदी सिनेमा के दो महान सितारे, राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन, जिन्होंने ‘आनंद’ (1971) और ‘नमक हराम’ (1973) जैसी फिल्मों में अपनी शानदार केमिस्ट्री से दर्शकों का दिल जीता, वे एक विवादास्पद सीन के बाद कभी एक साथ स्क्रीन पर नजर नहीं आए। ‘नमक हराम’ के आइकॉनिक क्लाइमेक्स सीन को लेकर हुए मतभेद ने इन दोनों सितारों के बीच की सिनेमाई साझेदारी को हमेशा के लिए खत्म कर दिया। आइए, जानते हैं उस अनकही कहानी को, जिसने बॉलीवुड के इतिहास में एक युग का अंत किया।
'आनंद' से 'नमक हराम' तक: एक शानदार शुरुआत
1971 में ऋषिकेश मुखर्जी की फिल्म ‘आनंद’ में राजेश खन्ना और अमिताभ बच्चन की जोड़ी ने दर्शकों को भावुक कर दिया। उस समय राजेश खन्ना हिंदी सिनेमा के पहले सुपरस्टार थे, जबकि अमिताभ बच्चन एक उभरते हुए अभिनेता। ‘आनंद’ की सफलता ने दोनों की जोड़ी को प्रशंसकों के बीच लोकप्रिय बना दिया। दो साल बाद, 1973 में, ऋषिकेश मुखर्जी ने दोनों को फिर से ‘नमक हराम’ में एक साथ लाया। गुलजार द्वारा लिखित यह फिल्म दोस्ती, वर्ग संघर्ष और विश्वासघात की कहानी थी, लेकिन सेट के पीछे एक ऐसी घटना घटी, जिसने इस जोड़ी को हमेशा के लिए अलग कर दिया।

क्लाइमेक्स सीन का विवाद
‘नमक हराम’ के क्लाइमेक्स में एक किरदार की मृत्यु का सीन फिल्म का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा था। राजेश खन्ना, जिन्हें अपनी पिछली फिल्मों जैसे ‘आनंद’, ‘अराधना’ और ‘सफर’ में दुखद अंत वाली भूमिकाओं के लिए जाना जाता था, चाहते थे कि उनके किरदार ‘सोमू’ की मृत्यु हो। दूसरी ओर, अमिताभ बच्चन का मानना था कि उनके किरदार ‘वicky’ की मृत्यु कहानी को अधिक प्रभावशाली बनाएगी। इस मुद्दे पर दोनों सितारों के बीच गहरे मतभेद उभरे। आखिरकार, निर्देशक ऋषिकेश मुखर्जी ने राजेश खन्ना के पक्ष में फैसला लिया और उनके किरदार को मृत्यु दी गई।
हालांकि, इस निर्णय से अमिताभ बच्चन को गहरा आघात पहुंचा। कहा जाता है कि राजेश खन्ना ने सेट पर अमिताभ के बढ़ते प्रभाव को लेकर असुरक्षा महसूस की और निर्देशक पर दबाव डाला। राजेश खन्ना के सचिव रहे प्रदीप रॉय के अनुसार, खन्ना को लगता था कि अमिताभ और ऋषिकेश मुखर्जी मिलकर उनके खिलाफ काम कर रहे थे। इस तनाव ने सेट पर एक ठंडी जंग को जन्म दिया।
सुपरस्टारडम की बदलती तस्वीर
1973 तक अमिताभ बच्चन की फिल्म ‘जंजीर’ ने उन्हें ‘एंग्री यंग मैन’ के रूप में स्थापित कर दिया था, जबकि राजेश खन्ना का सुपरस्टारडम धीरे-धीरे कम हो रहा था। ‘नमक हराम’ की रिलीज के बाद अमिताभ का किरदार दर्शकों के बीच अधिक लोकप्रिय हुआ, जिससे राजेश खन्ना को असहजता हुई। एक साक्षात्कार में राजेश खन्ना ने स्वीकार किया था, “जब मैंने लिबर्टी सिनेमा में ‘नमक हराम’ का ट्रायल शो देखा, मुझे पता चल गया था कि मेरा समय खत्म हो चुका है। मैंने ऋषिदा से कहा, ‘यह कल का सुपरस्टार है।'”
टूटी साझेदारी, चुप्पी का दौर
‘नमक हराम’ के बाद दोनों सितारों ने कभी एक साथ काम नहीं किया। इस विवाद ने न केवल उनकी पेशेवर साझेदारी को प्रभावित किया, बल्कि उनके निजी रिश्तों में भी दरार डाल दी। प्रदीप रॉय ने बताया कि ‘नमक हराम’ की शूटिंग के बाद अमिताभ कभी राजेश खन्ना के बंगले ‘आशीर्वाद’ नहीं आए। यहां तक कि ऋषिकेश मुखर्जी, जो पहले खन्ना के करीबी थे, उनके दौरे भी कम हो गए।
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हालांकि, अमिताभ बच्चन ने हमेशा सार्वजनिक रूप से राजेश खन्ना का सम्मान किया। 1990 में ‘मूवी’ पत्रिका को दिए एक साक्षात्कार में अमिताभ ने कहा, “हमने कभी एक-दूसरे से झगड़ा नहीं किया या एक-दूसरे को नीचा दिखाने की कोशिश नहीं की। ‘आनंद’ में राजेश खन्ना के साथ काम करना मेरे लिए सपना सच होने जैसा था।”
एक युग का अंत
2012 में राजेश खन्ना के निधन के बाद अमिताभ बच्चन ने उनके बंगले ‘आशीर्वाद’ में जाकर श्रद्धांजलि दी और अपने ब्लॉग में उनकी अंतिम बातों को याद किया: “टाइम हो गया है, पैक अप!” इन शब्दों ने न केवल राजेश खन्ना के जीवन के अंत को दर्शाया, बल्कि उस सिनेमाई जोड़ी के अंत को भी रेखांकित किया, जिसने हिंदी सिनेमा को दो अविस्मरणीय फिल्में दीं।
‘नमक हराम’ का वह आइकॉनिक क्लाइमेक्स सीन, जिसमें राजेश खन्ना की मृत्यु होती है और अमिताभ का किरदार बदला लेता है, आज भी सिनेमा प्रेमियों के दिलों में बस्ता है। लेकिन इस सीन ने दो सितारों के बीच एक ऐसी खामोश दीवार खड़ी कर दी, जिसे कोई नहीं तोड़ सका। यह कहानी न केवल बॉलीवुड के स्वर्णिम युग की याद दिलाती है, बल्कि यह भी बताती है कि कैसे एक सीन ने हिंदी सिनेमा के इतिहास को हमेशा के लिए बदल दिया।