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सुप्रीम कोर्ट ने राहुल गांधी को लगाई फटकार

  • वीर सावरकर पर टिप्पणी को बताया ‘गैर-जिम्मेदार’
  • राष्टृवादियों के दिलों को मिली ठंडक तो राहुल भक्तों का सिर हुआ नीचा
  • गांधी भी लिखते थे युवर फेथफुल सर्वेन्ट तो क्या वे अंग्रेजों के नौकर थे

Published on: April 25, 2025
By: [BTI]
Location: New Delhi, India

Barbarika Truth News India-image= July 7, 2025

सुप्रीम कोर्ट ने आज कांग्रेस नेता राहुल गांधी को वीर सावरकर के खिलाफ 2022 में की गई टिप्पणियों के लिए कड़ी फटकार लगाई। कोर्ट ने राहुल के बयानों को ‘गैर-जिम्मेदार’ करार देते हुए चेतावनी दी कि भविष्य में स्वतंत्रता सेनानियों पर इस तरह की टिप्पणियां बर्दाश्त नहीं की जाएंगी। यह मामला महाराष्ट्र के अकोला में भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी द्वारा सावरकर को ‘ब्रिटिश का नौकर’ कहने और उनके पत्रों का हवाला देने से जुड़ा है।

सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले की देश भर में व्यापक प्रतिक्रिया देखने मिल रही है। इससे एक तरफ राष्ट्रवादीयो के दिलों को भारी ठंडक मिली है वहीं कांग्रेस पार्टी व राहुल गांधी से जुड़े लोगों को नीचा देखना पड़ा है।
कोर्ट का फैसला: जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस मनमोहन की पीठ ने कहा कि राहुल गांधी के बयान न केवल सावरकर का अपमान करते हैं, बल्कि महाराष्ट्र जैसे राज्यों में लोगों की भावनाओं को ठेस पहुंचाते हैं, जहां सावरकर को स्वतंत्रता सेनानी के रूप में सम्मान दिया जाता है। कोर्ट ने ऐतिहासिक संदर्भ देते हुए कहा कि महात्मा गांधी भी अपने पत्रों में ब्रिटिश वायसराय को ‘आपका वफादार नौकर’ लिखते थे, क्या इसका मतलब यह है कि वे ब्रिटिश के नौकर थे? साथ ही, कोर्ट ने यह भी उल्लेख किया कि राहुल की दादी और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सावरकर की प्रशंसा में पत्र लिखा था।
लखनऊ कोर्ट में मामला: यह विवाद तब शुरू हुआ जब लखनऊ के वकील नृपेंद्र पांडे ने राहुल के बयानों के खिलाफ मानहानि का मामला दायर किया। लखनऊ कोर्ट ने राहुल को समन जारी किया था, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल रोक लगा दी है। हालांकि, कोर्ट ने राहुल को सख्त हिदायत दी कि वे भविष्य में ऐसे बयानों से बचें, वरना कोर्ट स्वतः संज्ञान लेकर कार्रवाई करेगा।
राहुल का पक्ष: राहुल गांधी के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कोर्ट में दलील दी कि राहुल का इरादा नफरत फैलाना या किसी का अपमान करना नहीं था। उन्होंने सावरकर के एक कथित पत्र का हवाला दिया था, जिसमें ब्रिटिश के प्रति वफादारी की बात कही गई थी। हालांकि, कोर्ट ने इस दलील को पूरी तरह स्वीकार नहीं किया और बयानबाजी में सावधानी बरतने की नसीहत दी।
देश का माहौल: यह फैसला ऐसे समय में आया है जब हाल ही में जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले (22 अप्रैल 2025) के बाद देश में तनाव का माहौल है। इस हमले में 26 लोग मारे गए थे, जिनमें ज्यादातर पर्यटक थे। इस घटना ने देश में भावनात्मक उबाल ला दिया है, और सावरकर जैसे स्वतंत्रता सेनानियों पर टिप्पणी को लेकर लोग संवेदनशील हैं।
कोर्ट की चेतावनी: सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि राहुल गांधी जैसे बड़े राजनेता को अपने बयानों में जिम्मेदारी दिखानी चाहिए। कोर्ट ने यह भी संकेत दिया कि स्वतंत्रता सेनानियों के सम्मान को ठेस पहुंचाने वाले बयान सामाजिक सौहार्द बिगाड़ सकते हैं।
आगे की राह: इस फैसले के बाद राहुल गांधी को भविष्य में अपने बयानों में सावधानी बरतनी होगी। सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला न केवल कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है, बल्कि यह देश में स्वतंत्रता सेनानियों के प्रति सम्मान और संवेदनशीलता के महत्व को भी रेखांकित करता है।

Barbarika Truth News India-image= July 7, 2025

विशेष उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में महात्मा गांधी के संदर्भ में “योर फेथफुल सर्वेंट” (Your Faithful Servant) का जिक्र किया। 25 अप्रैल 2025 को राहुल गांधी के वीर सावरकर पर की गई टिप्पणियों से संबंधित सुनवाई के दौरान जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस मनमोहन की पीठ ने ऐतिहासिक संदर्भ देते हुए यह बात कही।
कोर्ट ने उल्लेख किया कि महात्मा गांधी भी अपने पत्रों में ब्रिटिश वायसराय को “योर फेथफुल सर्वेंट” जैसे शब्दों का उपयोग करते थे। कोर्ट का तर्क था कि क्या इसका मतलब यह लगाया जाए कि महात्मा गांधी ब्रिटिश के नौकर थे? इस उदाहरण के जरिए कोर्ट ने यह स्पष्ट करने की कोशिश की कि ऐतिहासिक पत्रों या बयानों को उनके पूर्ण संदर्भ के बिना गलत तरीके से पेश नहीं करना चाहिए। यह टिप्पणी राहुल गांधी के उस बयान के जवाब में थी, जिसमें उन्होंने सावरकर के एक कथित पत्र का हवाला देते हुए उन्हें “ब्रिटिश का नौकर” कहा था।
हालांकि, कोर्ट ने सीधे तौर पर महात्मा गांधी के लिए “माफी” शब्द का उपयोग नहीं किया, लेकिन यह संदर्भ सावरकर के पत्रों में ब्रिटिश के प्रति कथित वफादारी के मुद्दे को संतुलित करने के लिए दिया गया। कोर्ट का मकसद यह दिखाना था कि उस समय के पत्राचार में ऐसे शब्दों का उपयोग आम था और इसे आज के संदर्भ में गलत अर्थ देना उचित नहीं है।

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