जस्टिस नरसिम्हा और जस्टिस चंदुरकर की बेंच ने उठाया सवाल, BCI को सुलभ और न्यायसंगत नीति बनाने का सुझाव
Published on: July 19, 2025
By: BTNI
Location: New Delhi, India
सुप्रीम कोर्ट ने बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) से पूछा है कि क्या आर्थिक रूप से कमजोर पृष्ठभूमि के लॉ ग्रेजुएट्स के लिए ऑल इंडिया बार एग्जामिनेशन (AIBE) के पंजीकरण शुल्क में छूट दी जा सकती है। यह सवाल गरीब छात्रों को वकालत के पेशे में प्रवेश की बाधाओं को कम करने के उद्देश्य से उठाया गया है।
न्यायालय ने BCI से इस मुद्दे पर विचार करने और व्यवहार्य समाधान सुझाने को कहा है, ताकि वित्तीय तंगी के कारण प्रतिभाशाली लॉ ग्रेजुएट्स को करियर शुरू करने में दिक्कत न हो। कोर्ट ने इस मामले में जल्द जवाब मांगा है और अगली सुनवाई में इस पर विस्तृत चर्चा की उम्मीद है।यह कदम उन हजारों लॉ ग्रेजुएट्स के लिए राहत की उम्मीद जगा रहा है, जो आर्थिक चुनौतियों के कारण AIBE जैसी परीक्षाओं में हिस्सा लेने में असमर्थ हैं।

सुप्रीम कोर्ट ने 18 जुलाई 2025 को बार काउंसिल ऑफ इंडिया (BCI) से पूछा कि क्या आर्थिक रूप से कमजोर लॉ ग्रेजुएट्स के लिए ऑल इंडिया बार एग्जामिनेशन (AIBE) के पंजीकरण शुल्क में छूट देने की नीति बनाई जा सकती है। यह सवाल आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के छात्रों को वकालत के पेशे में प्रवेश की बाधाओं को कम करने के उद्देश्य से उठाया गया। सुनवाई जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस एएस चंदुरकर की बेंच ने की, जो कुलदीप मिश्रा द्वारा दायर एक रिट याचिका पर विचार कर रही थी। याचिका में AIBE के लिए 3,500 रुपये के शुल्क को अत्यधिक बताते हुए इसे कम करने की मांग की गई थी।
जजों ने क्या कहा?
जस्टिस नरसिम्हा ने BCI के वकील से सवाल किया, “क्या आपके पास उन लोगों के लिए कोई योजना है जो शुल्क नहीं दे सकते? क्या आपने इस पर विचार किया है? कोई फंड बनाकर, जिसमें कोई आवेदन करे और छूट मांगे, ऐसी कोई स्कीम है?” उन्होंने BCI को सुझाव दिया कि वह एक ऐसी नीति बनाए, जिससे जरूरतमंद उम्मीदवारों को शुल्क में छूट दी जा सके। जजों ने यह भी कहा कि शुल्क की नीति पर पुनर्विचार की जरूरत है, ताकि यह सुनिश्चित हो कि आर्थिक तंगी के कारण कोई भी प्रतिभाशाली लॉ ग्रेजुएट वकालत शुरू करने से वंचित न रहे।
BCI के वकील का जवाब
BCI की ओर से पेश वकील ने जवाब दिया कि 30 जुलाई 2024 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले (गौरव कुमार बनाम भारत सरकार) के बाद, जिसमें सामान्य वर्ग के लिए नामांकन शुल्क 750 रुपये और SC/ST वर्ग के लिए 125 रुपये तय किया गया था, BCI की आय के स्रोत सीमित हो गए हैं। उन्होंने कहा कि शुल्क में छूट देने की नीति बनाना संभव है, लेकिन इसके लिए एक संतुलित योजना की जरूरत होगी, वरना “छूट के लिए आवेदनों का तांता लग जाएगा।” BCI के वकील ने आश्वासन दिया कि वे इस पहलू पर विचार करेंगे और एक उचित नीति बनाने की कोशिश करेंगे।
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याचिकाकर्ता के तर्क
याचिकाकर्ता कुलदीप मिश्रा ने तर्क दिया कि 3,500 रुपये का AIBE शुल्क गरीब और हाशिए पर रहने वाले लॉ ग्रेजुएट्स के लिए एक बड़ी बाधा है। उन्होंने कहा कि यह शुल्क सुप्रीम कोर्ट के 30 जुलाई 2024 के फैसले का उल्लंघन करता है, जिसमें नामांकन शुल्क को सीमित किया गया था। याचिकाकर्ता ने जोर दिया कि यह शुल्क संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 19(1)(g) (पेशे की स्वतंत्रता) का उल्लंघन करता है, क्योंकि यह आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों को वकालत के पेशे में प्रवेश से रोकता है।
पृष्ठभूमि और संदर्भ
सुप्रीम कोर्ट ने 30 जुलाई 2024 को गौरव कुमार बनाम भारत सरकार मामले में फैसला सुनाया था कि राज्य बार काउंसिल्स द्वारा लिया जाने वाला नामांकन शुल्क सामान्य वर्ग के लिए 750 रुपये और SC/ST वर्ग के लिए 125 रुपये से अधिक नहीं हो सकता। कोर्ट ने कहा था कि इससे अधिक शुल्क लेना संविधान के अनुच्छेद 14 और 19(1)(g) का उल्लंघन है, क्योंकि यह गरीब और हाशिए पर रहने वाले समुदायों के लिए पेशे में प्रवेश को कठिन बनाता है। इस फैसले के बाद, AIBE शुल्क को लेकर भी सवाल उठे, क्योंकि यह नामांकन शुल्क से अलग है, लेकिन फिर भी आर्थिक रूप से कमजोर छात्रों के लिए बोझिल है।
कोर्ट का निर्देश और अगली सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट ने BCI को निर्देश दिया कि वह AIBE शुल्क में छूट की संभावना पर विचार करे और एक ऐसी योजना तैयार करे, जो जरूरतमंद उम्मीदवारों की मदद कर सके। कोर्ट ने मामले को दो सप्ताह बाद दोबारा सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है, ताकि BCI इस पर अपनी प्रतिक्रिया दे सके।
प्रभाव और महत्व
यह कदम उन हजारों लॉ ग्रेजुएट्स के लिए राहत की उम्मीद जगा रहा है, जो आर्थिक तंगी के कारण AIBE जैसी परीक्षाओं में हिस्सा लेने में असमर्थ हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि BCI एक प्रभावी शुल्क छूट योजना लागू करता है, तो यह न केवल वकालत के पेशे को अधिक समावेशी बनाएगा, बल्कि कानूनी शिक्षा और पेशे में विविधता को भी बढ़ावा देगा।
यह मामला न केवल आर्थिक रूप से कमजोर लॉ ग्रेजुएट्स के लिए, बल्कि पूरे कानूनी पेशे में समानता और पहुंच सुनिश्चित करने के लिए एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।