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भारत के सबसे बड़े घोटाले: भ्रष्टाचार की कहानियों का गहन विश्लेषण

LIC-मुंध्रा से नेशनल हेराल्ड तक, जानें कैसे इन घोटालों ने देश को हिलाया

Published on: July 20, 2025
By: BTNI
Location: New Delhi, India

भारत में स्वतंत्रता के बाद से कई बड़े घोटाले सामने आए हैं, जिन्होंने देश की अर्थव्यवस्था, जनता के विश्वास और अंतरराष्ट्रीय छवि को गहरा आघात पहुंचाया। नीचे सूचीबद्ध घोटालों का गहन विश्लेषण प्रस्तुत है, जिसमें उनकी पृष्ठभूमि, शामिल लोग, प्रभाव और सुधारात्मक कदम शामिल हैं।

1. LIC-मुंध्रा घोटाला (1957)

पृष्ठभूमि: यह स्वतंत्रता के बाद का पहला बड़ा वित्तीय घोटाला था, जो 1957 में सामने आया। हरिदास मुंध्रा, एक उद्योगपति, ने भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC) को अपनी घाटे में चल रही कंपनियों के शेयर खरीदने के लिए प्रभावित किया।
कैसे हुआ: तत्कालीन वित्त मंत्री टी.टी. कृष्णमचारी के दबाव में LIC ने मुंध्रा की छह कंपनियों में 1.24 करोड़ रुपये का निवेश किया, जो उस समय कीमतों की तुलना में बहुत अधिक था। यह निवेश बिना उचित जांच के किया गया।
प्रमुख व्यक्ति: हरिदास मुंध्रा, टी.टी. कृष्णमचारी, और LIC के तत्कालीन अधिकारी।
प्रभाव: इस घोटाले ने LIC की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए और सार्वजनिक धन के दुरुपयोग को उजागर किया। जांच के बाद टी.टी. कृष्णमचारी को इस्तीफा देना पड़ा।
सुधार: इसने सार्वजनिक क्षेत्र के निवेशों में पारदर्शिता और जवाबदेही के लिए नियमों को कड़ा करने की आवश्यकता को रेखांकित किया।

2. बोफोर्स घोटाला (1980 के दशक)

पृष्ठभूमि: 1986 में भारत ने स्वीडिश कंपनी बोफोर्स एबी के साथ 1437 करोड़ रुपये का सौदा किया, जिसमें 400 155 मिमी हॉवित्जर तोपें भारतीय सेना के लिए खरीदी जानी थीं।
कैसे हुआ: 1987 में स्वीडिश रेडियो ने खुलासा किया कि सौदे को हासिल करने के लिए बोफोर्स ने भारतीय राजनेताओं और अधिकारियों को 64 करोड़ रुपये की रिश्वत दी। इसमें तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी और हिंदुजा बंधुओं का नाम सामने आया।
प्रमुख व्यक्ति: राजीव गांधी, बोफोर्स के तत्कालीन अध्यक्ष मार्टिन अर्डबो, मध्यस्थ विन चड्ढा, और हिंदुजा बंधु।
प्रभाव: इस घोटाले ने रक्षा खरीद में भ्रष्टाचार को उजागर किया और राजीव गांधी की सरकार को सत्ता से बाहर कर दिया। भारत की रक्षा विश्वसनीयता पर भी सवाल उठे।
सुधार: रक्षा सौदों में मध्यस्थों पर प्रतिबंध लगाया गया, जो आज भी लागू है।

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3. हर्षद मेहता घोटाला (1992)

पृष्ठभूमि: हर्षद मेहता, जिन्हें ‘बिग बुल’ कहा जाता था, ने 1992 में बैंकिंग और शेयर बाजार की खामियों का फायदा उठाकर 4,000-5,000 करोड़ रुपये का घोटाला किया।
कैसे हुआ: मेहता ने नकली बैंक रसीदों (BR) का उपयोग कर बैंकों से धन उधार लिया और इसे शेयर बाजार में निवेश किया। उन्होंने चुनिंदा कंपनियों के शेयरों की कीमतें कृत्रिम रूप से बढ़ाईं, जिससे सेंसेक्स 4500 तक पहुंच गया। घोटाला उजागर होने पर बाजार धराशायी हो गया।
प्रमुख व्यक्ति: हर्षद मेहता, कई बैंक अधिकारी, और कुछ राजनेता।
प्रभाव: लाखों निवेशकों की बचत डूब गई, और शेयर बाजार में विश्वास हिल गया। इसने भारत की वित्तीय प्रणाली की कमजोरियों को उजागर किया।
सुधार: सेबी (SEBI) को मजबूत किया गया, नेशनल स्टॉक एक्सचेंज (NSE) की स्थापना हुई, और बैंकिंग नियमों को कड़ा किया गया।

4. 2G स्पेक्ट्रम घोटाला (2008)

पृष्ठभूमि: 2008 में टेलीकॉम मंत्रालय ने 2G स्पेक्ट्रम लाइसेंसों को कम कीमत पर आवंटित किया, जिससे सरकारी खजाने को भारी नुकसान हुआ।
कैसे हुआ: तत्कालीन टेलीकॉम मंत्री ए. राजा ने पारदर्शी नीलामी के बजाय पहले आओ-पहले पाओ की नीति अपनाई। कई अयोग्य कंपनियों को लाइसेंस दिए गए, जिन्होंने बाद में इन्हें मोटे मुनाफे पर बेच दिया। CAG ने इस नुकसान को 1.76 लाख करोड़ रुपये आंका।
प्रमुख व्यक्ति: ए. राजा, स्वान टेलीकॉम, यूनिटेक वायरलेस, और अन्य टेलीकॉम कंपनियां।
प्रभाव: सुप्रीम कोर्ट ने 122 लाइसेंस रद्द किए, और यूपीए सरकार की साख को गहरा धक्का लगा। जनता का सरकार पर भरोसा कम हुआ।
सुधार: स्पेक्ट्रम आवंटन के लिए नीलामी प्रणाली लागू की गई।

5. कॉमनवेल्थ गेम्स घोटाला (2010)

पृष्ठभूमि: 2010 में नई दिल्ली में आयोजित कॉमनवेल्थ गेम्स में भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन के आरोप लगे।
कैसे हुआ: आयोजन समिति के अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी पर अनुबंधों को 400% तक बढ़ाकर देने, गैर-मौजूद पक्षों को भुगतान, और उपकरणों की खरीद में धांधली के आरोप लगे। कुल 70,000 करोड़ रुपये के बजट में से केवल आधा ही खिलाड़ियों पर खर्च हुआ।
प्रमुख व्यक्ति: सुरेश कलमाड़ी और अन्य आयोजन समिति के अधिकारी।
प्रभाव: इस घोटाले ने भारत की वैश्विक छवि को धूमिल किया और खेल आयोजनों में प्रबंधन की खामियों को उजागर किया।
सुधार: केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) ने जांच की, और भविष्य में पारदर्शी निविदा प्रक्रिया पर जोर दिया गया।

6. कोल आवंटन घोटाला (2012)

पृष्ठभूमि: 2004-2009 के बीच यूपीए सरकार ने 194 कोयला ब्लॉकों का आवंटन बिना नीलामी के किया।
कैसे हुआ: CAG ने बताया कि कोयला ब्लॉकों का आवंटन गैर-पारदर्शी और पक्षपातपूर्ण तरीके से हुआ, जिससे सरकारी खजाने को 1.86 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। कई निजी कंपनियों को अनुचित लाभ पहुंचाया गया।
प्रमुख व्यक्ति: कई नौकरशाह, राजनेता, और निजी कंपनियां।
प्रभाव: सुप्रीम कोर्ट ने 1993-2010 के बीच आवंटित सभी कोयला ब्लॉकों को अवैध घोषित किया। इसने यूपीए सरकार की विश्वसनीयता को गहरा नुकसान पहुंचाया।
सुधार: कोयला ब्लॉक आवंटन के लिए नीलामी प्रणाली शुरू की गई।

7. अगस्ता वेस्टलैंड हेलीकॉप्टर घोटाला (2010)

पृष्ठभूमि: 2010 में यूपीए सरकार ने अगस्ता वेस्टलैंड से 12 वीवीआईपी हेलीकॉप्टर खरीदने के लिए 3,600 करोड़ रुपये का सौदा किया।
कैसे हुआ: सौदे में रिश्वत और मध्यस्थों की भूमिका के आरोप लगे। इतालवी जांच में खुलासा हुआ कि सौदे को प्रभावित करने के लिए बड़े पैमाने पर रिश्वत दी गई।
प्रमुख व्यक्ति: अगस्ता वेस्टलैंड, कुछ भारतीय राजनेता, और रक्षा अधिकारी।
प्रभाव: भारत ने सौदा रद्द किया और 2,068 करोड़ रुपये की गारंटी राशि वसूल की। इसने रक्षा खरीद प्रक्रिया पर सवाल उठाए।
सुधार: रक्षा सौदों में और अधिक पारदर्शिता लाने के लिए नीतियां बनाई गईं।

8. नेशनल हेराल्ड घोटाला (2012 से चल रहा)

पृष्ठभूमि: नेशनल हेराल्ड अखबार, जो कांग्रेस पार्टी से जुड़ा था, 1938 में शुरू हुआ। 2012 में इसके स्वामित्व और संपत्ति हस्तांतरण में अनियमितताओं के आरोप लगे।
कैसे हुआ: आरोप है कि यंग इंडियन प्राइवेट लिमिटेड, जिसमें सोनिया गांधी और राहुल गांधी की हिस्सेदारी थी, ने नेशनल हेराल्ड की मूल कंपनी एसोसिएटेड जर्नल्स लिमिटेड (AJL) की 2,000 करोड़ रुपये की संपत्ति को कम कीमत पर हासिल किया। कांग्रेस ने AJL को 90 करोड़ रुपये का ऋण दिया, जिसे बाद में माफ कर दिया गया।
प्रमुख व्यक्ति: सोनिया गांधी, राहुल गांधी, और अन्य कांग्रेस नेता।
प्रभाव: यह मामला अभी भी अदालत में है और कांग्रेस की छवि पर सवाल उठाता है। इसने राजनीतिक दलों द्वारा वित्तीय अनियमितताओं के मुद्दे को उजागर किया।
सुधार: इसने गैर-लाभकारी संगठनों और राजनीतिक दलों के वित्तीय लेनदेन की जांच को बढ़ावा दिया।

समग्र प्रभाव और सबक:ये घोटाले भारत की आर्थिक, सामाजिक, और राजनीतिक प्रणाली पर गहरा प्रभाव डालने वाले हैं।

इनके कारण:आर्थिक नुकसान: लाखों करोड़ रुपये का नुकसान हुआ, जो विकास कार्यों में उपयोग हो सकता था।
विश्वास की कमी: जनता का सरकार और संस्थानों पर भरोसा कम हुआ।
वैश्विक छवि: रक्षा और खेल जैसे क्षेत्रों में भारत की साख को ठेस पहुंची।
सुधारों की शुरुआत: सेबी, नीलामी प्रणाली, और पारदर्शी निविदा प्रक्रियाओं जैसे सुधार लागू हुए।

ये घोटाले भारत के इतिहास में भ्रष्टाचार के काले अध्याय हैं, जो यह दर्शाते हैं कि सत्ता और संसाधनों का दुरुपयोग कितना नुकसान पहुंचा सकता है। हालांकि इनके परिणामस्वरूप कई सुधार हुए, फिर भी भ्रष्टाचार को पूरी तरह खत्म करने के लिए सतत सतर्कता, पारदर्शिता, और जवाबदेही की आवश्यकता है। कुसुम साहू जैसी कहानियां, जो लखपति दीदी योजना के माध्यम से सशक्तिकरण की मिसाल हैं, यह साबित करती हैं कि सही नीतियां और पारदर्शी व्यवस्था देश को प्रगति की राह पर ले जा सकती हैं।

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