‘विजन डॉक्यूमेंट 2047’ का होगा प्रस्तुतीकरण, सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ जनकल्याणकारी निर्णयों की उम्मीद
Published on: May 20, 2025
By: BTI
Location: Indore, India
मध्य प्रदेश की आर्थिक और सांस्कृतिक नगरी इंदौर में कल 20 मई को ऐतिहासिक राजवाड़ा परिसर में मंत्रिपरिषद की विशेष बैठक आयोजित की जाएगी। यह बैठक लोकमाता देवी अहिल्याबाई होल्कर की 300वीं जयंती वर्ष के समापन और उनकी विवाह वर्षगांठ के उपलक्ष्य में हो रही है। मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव की अध्यक्षता में होने वाली इस बैठक में कई जनहितैषी निर्णय लिए जाने की उम्मीद है।

कार्यक्रम की रूपरेखा
कैबिनेट बैठक: पहली बार राजवाड़ा जैसे ऐतिहासिक स्थल पर मध्य प्रदेश सरकार की कैबिनेट बैठक होगी। यह बैठक सुशासन, स्वावलंबन, आत्मनिर्भरता और महिला कल्याण की प्रतीक देवी अहिल्याबाई के सम्मान में आयोजित की जा रही है। बैठक में “विजन डॉक्यूमेंट 2047” का प्रस्तुतीकरण भी किया जाएगा, जो राज्य के दीर्घकालिक विकास लक्ष्यों को रेखांकित करेगा।
सांस्कृतिक आयोजन: राजवाड़ा परिसर को भव्य रूप से सजाया जाएगा। लोकमाता की प्रतिमा पर माल्यार्पण और श्रद्धांजलि अर्पित की जाएगी। इस अवसर पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होगा, जिसमें देवी अहिल्याबाई के जीवन और योगदान पर आधारित प्रस्तुतियाँ शामिल होंगी।
जनकल्याणकारी निर्णय: मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने संकेत दिए हैं कि इस बैठक में जनकल्याण से जुड़े कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए जाएंगे। इनमें शिक्षा, महिला सशक्तीकरण, और सांस्कृतिक संरक्षण से संबंधित योजनाएँ शामिल हो सकती हैं।
प्रदेशव्यापी कार्यक्रम: 20 से 31 मई तक मध्य प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में देवी अहिल्याबाई की स्मृति में विविध आयोजन होंगे। इनमें उनके द्वारा स्थापित मंदिरों और घाटों के संरक्षण, साथ ही उनके जीवन पर आधारित प्रदर्शनियों का आयोजन शामिल है।
तैयारियाँ जोर-शोर से
इंदौर प्रशासन ने इस ऐतिहासिक आयोजन के लिए व्यापक तैयारियाँ की हैं। राजवाड़ा परिसर में सुरक्षा और यातायात व्यवस्था को सुनिश्चित करने के लिए विशेष इंतजाम किए गए हैं। कलेक्टर ने बताया कि यह आयोजन न केवल इंदौर बल्कि पूरे मध्य प्रदेश के लिए गौरव का क्षण होगा।
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देवी अहिल्याबाई का योगदान
लोकमाता देवी अहिल्याबाई होल्कर को उनके सुशासन, न्यायप्रियता और समाज कल्याण के कार्यों के लिए जाना जाता है। उन्होंने मंदिरों, घाटों, और धर्मशालाओं का निर्माण करवाया, जो आज भी उनकी विरासत को जीवित रखते हैं। उनकी 300वीं जयंती वर्ष को चिरस्थायी बनाने के लिए मध्य प्रदेश सरकार ने पूरे वर्ष विभिन्न कार्यक्रम आयोजित किए हैं।
यह आयोजन न केवल देवी अहिल्याबाई के प्रति श्रद्धांजलि है, बल्कि मध्य प्रदेश की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहर को संरक्षित करने का एक प्रयास भी है। इंदौरवासियों के लिए यह गर्व का अवसर है कि उनकी नगरी इस ऐतिहासिक पल की साक्षी बनेगी।
अवहिल्या बाई का देश की धार्मिकता व संस्कृति संरक्षण व संवाहन में क्या योगदान रहा है।देवी अहिल्याबाई होल्कर का धार्मिकता, संस्कृति संरक्षण और संवाहन में योगदान
लोकमाता देवी अहिल्याबाई होल्कर (1725-1795) मराठा साम्राज्य की होल्कर रियासत की शासिका थीं, जिन्होंने अपने शासनकाल में धार्मिकता, भारतीय संस्कृति के संरक्षण और संवाहन में अतुलनीय योगदान दिया। उनकी दूरदर्शिता, सुशासन और समाज कल्याण के प्रति समर्पण ने उन्हें भारतीय इतिहास में अमर बना दिया। निम्नलिखित बिंदुओं में उनके योगदान को समझा जा सकता है:
1. धार्मिक स्थलों का निर्माण और संरक्षण
मंदिरों का निर्माण: अहिल्याबाई ने देशभर में अनेक मंदिरों का निर्माण और जीर्णोद्धार करवाया। सबसे प्रसिद्ध है काशी विश्वनाथ मंदिर (वाराणसी) का पुनर्निर्माण, जो उनकी धार्मिक सहिष्णुता और भक्ति का प्रतीक है। इसके अलावा, सोमनाथ, हरिद्वार, बद्रीनाथ, केदारनाथ, द्वारका, उज्जैन, और अन्य तीर्थ स्थलों में मंदिरों का निर्माण या मरम्मत उनके संरक्षण कार्य का हिस्सा थी।
घाट और धर्मशालाएँ: उन्होंने गंगा, यमुना, नर्मदा जैसी पवित्र नदियों के किनारे घाटों का निर्माण करवाया, जैसे वाराणसी में अहिल्या घाट। तीर्थयात्रियों की सुविधा के लिए धर्मशालाएँ और विश्राम गृह बनवाए, जो धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने में सहायक रहे।
सभी धर्मों के प्रति सम्मान: अहिल्याबाई ने हिंदू मंदिरों के साथ-साथ अन्य धर्मों के पूजा स्थलों के लिए भी सहायता प्रदान की, जिससे धार्मिक सौहार्द को बढ़ावा मिला।
2. संस्कृति और परंपराओं का संवाहन
सांस्कृतिक एकता: अहिल्याबाई ने विभिन्न क्षेत्रों में मंदिरों, घाटों और सामुदायिक स्थलों के निर्माण से भारतीय संस्कृति की एकता को मजबूत किया। उनके कार्यों ने तीर्थ स्थलों को सांस्कृतिक केंद्रों के रूप में स्थापित किया, जहाँ कला, संगीत और धार्मिक अनुष्ठानों का संरक्षण हुआ।
शिक्षा और विद्या का प्रचार: उन्होंने संस्कृत पाठशालाओं और धार्मिक ग्रंथों के अध्ययन को प्रोत्साहन दिया। उनके शासन में विद्वानों और पंडितों को संरक्षण मिला, जिससे भारतीय दर्शन और शास्त्रों का संरक्षण हुआ।
कला और स्थापत्य: अहिल्याबाई के बनवाए मंदिर और घाट भारतीय स्थापत्य कला के उत्कृष्ट नमूने हैं। उनके निर्माण कार्यों में स्थानीय कारीगरों को रोजगार मिला, जिससे पारंपरिक शिल्पकला का संवाहन हुआ।
3. समाज कल्याण और धार्मिकता का समन्वय
न्याय और सुशासन: अहिल्याबाई का शासन धर्म पर आधारित था, लेकिन वह धर्मनिरपेक्ष और समावेशी था। उन्होंने अपने शासन में धर्म को समाज कल्याण का आधार बनाया, जैसे गरीबों को अन्नदान, विधवाओं और अनाथों की सहायता, और सामाजिक सुधार।
त्योहारों और अनुष्ठानों का प्रोत्साहन: उनके शासन में धार्मिक त्योहारों और उत्सवों को सामुदायिक एकता के रूप में मनाया जाता था। इससे सामाजिक और सांस्कृतिक मूल्यों का संरक्षण हुआ।
नारी शक्ति का प्रतीक: एक महिला शासिका के रूप में, उन्होंने धार्मिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी को प्रोत्साहित किया, जो उस समय के लिए क्रांतिकारी था।
4. तीर्थयात्रा और धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा
अहिल्याबाई ने तीर्थ स्थलों को जोड़ने वाली सड़कों, विश्राम स्थलों और जलाशयों का निर्माण करवाया, जिससे तीर्थयात्रा सुगम हुई। इससे धार्मिक और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा मिला।
उनके द्वारा बनाए गए घाट और मंदिर आज भी लाखों श्रद्धालुओं को आकर्षित करते हैं, जो भारतीय संस्कृति के जीवंत प्रतीक हैं।
5. विरासत का दीर्घकालिक प्रभाव
अहिल्याबाई के कार्यों ने भारतीय समाज में धार्मिकता और संस्कृति को एक मजबूत आधार प्रदान किया। उनके बनाए मंदिर, घाट और धर्मशालाएँ आज भी उनकी दूरदर्शिता की गवाही देते हैं।
उनकी प्रशासनिक नीतियों और धार्मिक कार्यों ने मराठा साम्राज्य को सांस्कृतिक रूप से समृद्ध किया और भारत की एकता को सुदृढ़ किया।
उनकी विरासत को मध्य प्रदेश सरकार द्वारा उनकी 300वीं जयंती (2025) के अवसर पर विभिन्न आयोजनों के माध्यम से संरक्षित और प्रचारित किया जा रहा है, जैसे इंदौर में कैबिनेट बैठक और सांस्कृतिक कार्यक्रम।
निष्कर्ष
देवी अहिल्याबाई होल्कर ने धार्मिकता और भारतीय संस्कृति को न केवल संरक्षित किया, बल्कि उसे जन-जन तक पहुँचाने का कार्य भी किया। उनके मंदिर, घाट, और समाज कल्याण के कार्य आज भी भारतीय संस्कृति के आधार स्तंभ हैं। उनकी विरासत नारी शक्ति, सुशासन और धार्मिक सौहार्द का प्रतीक है, जो आधुनिक भारत के लिए भी प्रेरणादायी है।