बिचौलियों की लूट से त्रस्त मखाना किसान, सरकार की नीतियों पर उठ रहे सवाल
Published on: August 13, 2025
By: BTNI
Location: New Delhi/ Patna, India
बिहार के मखाना किसानों की मेहनत और उनकी फसल की कीमत के बीच गहरा अंतर एक बार फिर सुर्खियों में है। जहां किसान अपनी 7 किलोग्राम मखाना को मात्र 400 रुपये में बेचने को मजबूर हैं, वहीं बाजार में यही मखाना 2000 रुपये प्रति किलो की दर से बिक रहा है। इस भारी अंतर ने बिचौलियों और व्यापारियों की लूट को उजागर किया है, जिसके चलते मखाना उत्पादक किसानों को उनकी मेहनत का उचित मूल्य नहीं मिल रहा। सवाल उठ रहा है कि सरकार इस शोषण को क्यों नहीं रोक रही?
मखाना उत्पादन: मेहनत बड़ी, मुनाफा कम
मखाना, जिसे ‘मिथिला का सोना’ भी कहा जाता है, मुख्य रूप से बिहार के दरभंगा, मधुबनी, पूर्णिया और कोसी क्षेत्र में उगाया जाता है। यह फसल श्रमसाध्य है, जिसमें तालाबों में गहरे पानी में काम करना, मखाना निकालना और उसे सुखाने की जटिल प्रक्रिया शामिल है। इसके बावजूद, किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य नहीं मिलता। बिहार के मधुबनी जिले के किसान रामचंद्र महतो ने बताया, “हम 7 किलो मखाना 400 रुपये में बेचते हैं, लेकिन बाजार में वही 2000 रुपये प्रति किलो बिकता है। सारा मुनाफा बिचौलिए और व्यापारी ले जाते हैं।”
बिचौलियों का खेल: किसान की मेहनत पर डाका
किसानों से सस्ते दामों पर मखाना खरीदने के बाद, बिचौलिए इसे प्रोसेसिंग यूनिट्स और बड़े व्यापारियों को बेचते हैं। प्रोसेसिंग, पैकेजिंग और ब्रांडिंग के बाद मखाना की कीमत कई गुना बढ़ जाती है। दिल्ली और मुंबई जैसे महानगरों में मखाना 1500 से 2000 रुपये प्रति किलो तक बिकता है, जबकि इस मुनाफे का एक छोटा सा हिस्सा भी किसानों तक नहीं पहुंचता। कृषि विशेषज्ञ डॉ. सुनील कुमार के अनुसार, “मखाना की आपूर्ति श्रृंखला में बिचौलियों की मौजूदगी और पारदर्शिता की कमी मुख्य समस्या है। किसानों को संगठित बाजार और उचित मूल्य निर्धारण की सुविधा नहीं मिलती।”
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सरकार की नीतियां: कहां है कमी?
बिहार सरकार और केंद्र सरकार ने मखाना उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं, जैसे मखाना विकास योजना और बिहार में मखाना अनुसंधान केंद्र की स्थापना। इसके बावजूद, किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) या मखाना के लिए प्रत्यक्ष बाजार सुविधा जैसी ठोस व्यवस्था नहीं मिली है। बिहार के मखाना उत्पादक सहकारी समितियों की कमी और मंडियों में मखाना के लिए विशेष व्यवस्था न होने से किसान स्थानीय व्यापारियों पर निर्भर रहते हैं। विपक्षी दलों ने सरकार पर आरोप लगाया है कि वह बिचौलियों और बड़े व्यापारियों को संरक्षण दे रही है, जिससे किसानों का शोषण हो रहा है।
किसानों की मांग: उचित मूल्य और बाजार सुविधा
मखाना किसान लंबे समय से अपनी उपज के लिए उचित मूल्य और बिचौलियों से मुक्ति की मांग कर रहे हैं। दरभंगा के किसान नेता सुधीर यादव ने कहा, “सरकार को मखाना के लिए MSP लागू करना चाहिए और सीधे खरीद की व्यवस्था करनी चाहिए। हमारी मेहनत का फायदा बिचौलियों को क्यों मिले?” कई किसानों ने यह भी मांग की है कि मखाना को ‘वन डिस्ट्रिक्ट, वन प्रोडक्ट’ (ODOP) योजना के तहत प्रोत्साहन मिले, ताकि उनकी उपज को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में बेहतर कीमत मिल सके।
वैश्विक मांग और मखाना का महत्व
मखाना की मांग न केवल भारत में, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी बढ़ रही है। इसके पौष्टिक गुणों के कारण इसे ‘सुपरफूड’ के रूप में प्रचारित किया जा रहा है। अमेरिका, यूरोप और मध्य पूर्व के देशों में मखाना का निर्यात बढ़ा है, लेकिन इस बढ़ते मुनाफे का लाभ किसानों तक नहीं पहुंच रहा। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के अनुसार, यदि मखाना के लिए प्रत्यक्ष विपणन और मूल्यवर्धन की सुविधाएं उपलब्ध हों, तो किसानों की आय दोगुनी हो सकती है।
आगे की राह
मखाना किसानों की स्थिति सुधारने के लिए विशेषज्ञ कई उपाय सुझा रहे हैं: मखाना के लिए MSP: मखाना को न्यूनतम समर्थन मूल्य की सूची में शामिल करना।
सहकारी समितियां और FPO: किसान उत्पादक संगठनों (FPO) और सहकारी समितियों को बढ़ावा देना, ताकि बिचौलियों की भूमिका कम हो।
प्रोसेसिंग इकाइयां: स्थानीय स्तर पर मखाना प्रोसेसिंग इकाइयों की स्थापना, ताकि किसानों को मूल्यवर्धन का लाभ मिले।
जागरूकता और प्रशिक्षण: किसानों को आधुनिक खेती और विपणन तकनीकों का प्रशिक्षण देना।
मखाना किसानों की मेहनत और बाजार में उनकी उपज की कीमत के बीच का अंतर न केवल आर्थिक शोषण को दर्शाता है, बल्कि सरकार की नीतियों में सुधार की जरूरत को भी उजागर करता है। बिहार के मखाना किसान देश के लिए ‘सोना’ उगा रहे हैं, लेकिन उनकी मेहनत का फल बिचौलियों और व्यापारियों की जेब में जा रहा है। यह समय है कि सरकार ठोस कदम उठाए, ताकि मखाना किसानों को उनकी मेहनत का उचित मूल्य मिले और उनकी जिंदगी में समृद्धि आए।