समय पर इलाज न मिलने से रेबीज ने छीनी दो जिंदगियां, विशेषज्ञों की चेतावनी- तुरंत टीकाकरण जरूरी
Published on: August 13, 2025
By: [BTI]
Location: Bulandshaher/ New Delhi, India
आवारा कुत्तों के प्रति दया और प्रेम एक मानवीय भावना है, लेकिन हाल ही में दो दिल दहला देने वाली घटनाओं ने इस दया की भारी कीमत को उजागर किया है। उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर के 22 वर्षीय कबड्डी खिलाड़ी ब्रजेश सोलंकी और एक अन्य युवती की रेबीज से दर्दनाक मृत्यु ने पूरे देश को झकझोर दिया है। इन दोनों ने आवारा कुत्तों को बचाने की कोशिश में काटे जाने के बाद समय पर रेबीज का टीका नहीं लिया, जिसके परिणामस्वरूप उनकी जान चली गई। यह घटना रेबीज के खतरे और तत्काल चिकित्सा उपचार की आवश्यकता को रेखांकित करती है।
ब्रजेश सोलंकी की दुखद कहानी
ब्रजेश सोलंकी, एक होनहार कबड्डी खिलाड़ी और प्रो-कबड्डी लीग के सपने देखने वाले, ने मार्च में एक नाले में फंसे पिल्ले को बचाने की कोशिश की। इस दौरान पिल्ले ने उनके उंगली पर हल्का सा काट लिया। ब्रजेश ने इसे मामूली चोट समझकर नजरअंदाज कर दिया और रेबीज वैक्सीन नहीं ली। उनके कोच प्रवीण कुमार के अनुसार, “ब्रजेश ने दर्द को कबड्डी की सामान्य चोट समझा और इसे गंभीरता से नहीं लिया।” जून के अंत में, ब्रजेश को सुन्नपन, ठंड लगना और पक्षाघात जैसे लक्षण दिखाई दिए। उन्हें अलीगढ़, मथुरा और अंततः दिल्ली के जीटीबी अस्पताल ले जाया गया, जहां रेबीज की पुष्टि हुई। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। ब्रजेश की मृत्यु घर वापसी के रास्ते में हो गई।
युवती की हृदयविदारक स्थिति
एक अन्य घटना में, एक युवती, जिसे आवारा कुत्ते ने काटा था, रेबीज के गंभीर लक्षणों से जूझती नजर आई। वायरल वीडियो में उसे बिस्तर पर बंधा हुआ, दर्द से चीखते और छटपटाते हुए देखा गया, जबकि उसके माता-पिता असहाय होकर रोते रहे। विशेषज्ञों के अनुसार, रेबीज के लक्षण शुरू होने के बाद इलाज असंभव हो जाता है, और यह लगभग 100% घातक है। इस युवती की दुखद मृत्यु ने समाज में रेबीज के प्रति जागरूकता की कमी को उजागर किया।
रेबीज: एक रोकथाम योग्य लेकिन घातक बीमारी
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, रेबीज एक वायरल बीमारी है जो मस्तिष्क और तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करती है। यह मुख्य रूप से आवारा कुत्तों के काटने या उनकी लार के संपर्क में आने से फैलती है। भारत में हर साल हजारों लोग, खासकर बच्चे, रेबीज के कारण अपनी जान गंवाते हैं। इसका मुख्य कारण जागरूकता की कमी और समय पर उपचार न लेना है।
डॉ. नसीरुद्दीन जी, फोर्टिस अस्पताल, बेंगलुरु, ने चेतावनी दी, “कुत्ते के काटने के बाद तुरंत रेबीज वैक्सीन लेना जरूरी है। यदि लक्षण शुरू हो जाएं, तो रेबीज लगभग हमेशा घातक होता है।” रेबीज के शुरुआती लक्षणों में बुखार, सिरदर्द, और काटने की जगह पर जलन शामिल हैं, जबकि बाद के लक्षणों में हाइड्रोफोबिया (पानी से डर), आक्रामकता, भटकाव, और पक्षाघात शामिल हैं।
तत्काल उपाय और रोकथाम
विशेषज्ञों का कहना है कि कुत्ते के काटने या खरोंच के तुरंत बाद निम्नलिखित कदम उठाए जाने चाहिए:
घाव को धोएं: कम से कम 15 मिनट तक साबुन और पानी से घाव को अच्छी तरह धोएं।
चिकित्सा सहायता लें: तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें और रेबीज वैक्सीन (ARV) शुरू करें। गंभीर मामलों में रेबीज इम्यूनोग्लोबुलिन (RIG) की आवश्यकता हो सकती है।
जागरूकता बढ़ाएं: आवारा जानवरों से दूरी बनाए रखें और बच्चों को अज्ञात जानवरों से दूर रहने की शिक्षा दें।
समुदाय में जागरूकता अभियान
ब्रजेश की मृत्यु के बाद, बुलंदशहर के फराना गांव में स्वास्थ्य अधिकारियों ने 29 लोगों को रेबीज वैक्सीन दी और जागरूकता अभियान शुरू किया। मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ. सुनील कुमार दोहरे ने लोगों से आग्रह किया कि वे किसी भी पशु के काटने की स्थिति में तुरंत सरकारी अस्पताल में जांच कराएं।
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सामाजिक बहस और सबक
इन घटनाओं ने आवारा कुत्तों को लेकर चल रहे सामाजिक कार्यों पर सवाल उठाए हैं। जहां एक ओर कई लोग आवारा कुत्तों को भोजन और आश्रय देकर उनकी मदद करते हैं, वहीं विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि बिना सावधानी के ऐसा करना खतरनाक हो सकता है। डॉ. मंजूषा अग्रवाल, ग्लेनीगल्स अस्पताल, मुंबई, ने कहा, “यहां तक कि एक छोटा खरोंच या लार का संपर्क भी रेबीज फैला सकता है। तत्काल वैक्सीनेशन ही एकमात्र बचाव है।”
ब्रजेश सोलंकी और उस युवती की दुखद मृत्यु रेबीज के प्रति लापरवाही की भयावह परिणति को दर्शाती है। यह समाज के लिए एक चेतावनी है कि आवारा जानवरों के प्रति दया दिखाते समय सावधानी बरतना और तत्काल चिकित्सा उपचार लेना कितना महत्वपूर्ण है। समय पर रेबीज वैक्सीन और इम्यूनोग्लोबुलिन जीवन रक्षक हो सकते हैं, लेकिन एक छोटी सी देरी जानलेवा साबित हो सकती है।