भागवत ने जोर देकर कहा, ‘भारत ही भारत रहेगा’, संविधान की भावना को दोहराया
Published on: July 28, 2025
By: BTNI
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत ने भारत के नाम को लेकर एक बार फिर स्पष्ट और दृढ़ रुख अपनाया है। एक हालिया कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि ‘भारत’ एक उचित संज्ञा (प्रॉपर नाउन) है और इसका किसी भी भाषा में अनुवाद नहीं किया जाना चाहिए। भागवत ने जोर देकर कहा, “संविधान में लिखा है ‘इंडिया दैट इज भारत’, यह सत्य है, लेकिन भारत को भारत ही रहना चाहिए।”
उनके इस बयान ने देश के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक पहचान के मुद्दे को फिर से चर्चा में ला दिया है।मोहन भागवत ने अपने संबोधन में भारत की प्राचीन सांस्कृतिक विरासत पर प्रकाश डाला और कहा कि ‘भारत’ शब्द न केवल एक नाम है, बल्कि देश की आत्मा और पहचान का प्रतीक है। उन्होंने तर्क दिया कि वैश्विक मंच पर भी भारत को ‘भारत’ के रूप में ही प्रस्तुत करना चाहिए, क्योंकि यह नाम देश की सभ्यता, संस्कृति और इतिहास को दर्शाता है। भागवत का यह बयान ऐसे समय में आया है, जब हाल के वर्षों में ‘भारत’ बनाम ‘इंडिया’ की बहस ने राजनीतिक और सामाजिक मंचों पर जोर पकड़ा है।
2023 में G20 शिखर सम्मेलन के दौरान सरकार द्वारा आधिकारिक दस्तावेजों में ‘भारत’ शब्द के उपयोग ने इस चर्चा को और हवा दी थी।भागवत ने अपने भाषण में संविधान का हवाला देते हुए कहा कि ‘भारत’ शब्द संवैधानिक रूप से भी मान्य है और इसे बदलने या अनुवाद करने की कोई आवश्यकता नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि यह नाम देश की एकता और अखंडता को मजबूत करता है।
उनके इस बयान को RSS समर्थकों ने देश की सांस्कृतिक पहचान को मजबूत करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम बताया, जबकि कुछ आलोचकों ने इसे अनावश्यक मुद्दा उठाने की कोशिश करार दिया।यह बयान न केवल सांस्कृतिक बहस को हवा दे रहा है, बल्कि राजनीतिक हलकों में भी चर्चा का विषय बन गया है। बीजेपी ने भागवत के बयान का स्वागत करते हुए कहा कि यह भारत की सांस्कृतिक विरासत को वैश्विक स्तर पर स्थापित करने की दिशा में एक कदम है।
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वहीं, विपक्षी दलों ने इसे एक राजनीतिक एजेंडा करार दिया और कहा कि देश के सामने कई अन्य जरूरी मुद्दे हैं, जिन पर ध्यान देना चाहिए।मोहन भागवत का यह बयान भारत की पहचान को लेकर एक गहरी और विचारोत्तेजक चर्चा को जन्म दे रहा है। यह सवाल उठता है कि क्या ‘भारत’ शब्द को वैश्विक स्तर पर अपनाने से देश की सांस्कृतिक और ऐतिहासिक विरासत को और मजबूती मिलेगी? इस मुद्दे पर आने वाले दिनों में और बहस होने की संभावना है।