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केजरीवाल के बाद ‘नई राजनीति’ पर भरोसा टूटा: क्या बिहार में NDA की राह होगी मुश्किल?

विपक्षी वोटों में बंटवारे का खतरा, लालू गठबंधन को मिल सकता है अप्रत्याशित लाभ

Published on: July 20, 2025
By: BTNI
Location: Patna, India

बिहार की राजनीति में एक बार फिर ‘नई राजनीति’ का दावा उठ रहा है, लेकिन दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के अनुभवों ने मतदाताओं का भरोसा डगमगा दिया है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि नई तरह की राजनीति का नारा देने वाले नए चेहरे बिहार में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) के वोट बैंक में सेंधमारी कर सकते हैं, जिसका सीधा फायदा लालू प्रसाद यादव के नेतृत्व वाले गठबंधन को मिल सकता है।

हाल के राजनीतिक घटनाक्रमों में एक उभरते नेता द्वारा ‘नई राजनीति’ की बात उठाई गई है, लेकिन जानकारों का कहना है कि उनकी जीत की संभावना कम है। इसके बावजूद, उनकी मौजूदगी NDA के वोटों को बांट सकती है, जिससे राष्ट्रीय जनता दल (RJD) और उसके सहयोगियों को मजबूती मिलने की संभावना है।

केजरीवाल का सबक: भरोसे का संकट

केजरीवाल की आम आदमी पार्टी (AAP) ने 2013 में ‘नई राजनीति’ का वादा कर दिल्ली में सत्ता हासिल की थी, लेकिन बाद के विवादों और उनके शासन के अनुभवों ने कई मतदाताओं को निराश किया। बिहार में भी अब लोग इस तरह के दावों को संदेह की नजर से देख रहे हैं। एक स्थानीय विश्लेषक ने कहा, “केजरीवाल के बाद लोग ‘नई राजनीति’ के नारे पर आसानी से भरोसा नहीं करते। मतदाता अब ठोस नीतियों और विश्वसनीय नेतृत्व की तलाश में हैं।”

NDA के लिए चुनौती

NDA, जो बिहार में एक मजबूत गठबंधन के रूप में उभरा है, अब इस नए खिलाड़ी के कारण वोटों के बंटवारे की आशंका से जूझ रहा है। विशेषज्ञों का मानना है कि यह नया चेहरा भले ही जीत न पाए, लेकिन वह NDA के परंपरागत समर्थकों, खासकर युवाओं और शहरी मतदाताओं, को आकर्षित कर सकता है। इससे NDA की सीटों की संख्या पर असर पड़ सकता है।

लालू गठबंधन को अप्रत्याशित लाभ?

वोटों के बंटवारे का सबसे बड़ा फायदा RJD और उसके महागठबंधन सहयोगियों को मिल सकता है। लालू प्रसाद यादव की रणनीति हमेशा से सामाजिक समीकरणों और क्षेत्रीय मुद्दों पर केंद्रित रही है। अगर NDA के वोट बंटते हैं, तो RJD की स्थिति मजबूत हो सकती है, खासकर उन क्षेत्रों में जहां मुकाबला कांटे का है।

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मतदाताओं का मूड

बिहार के मतदाता इस बार विकास, रोजगार और बुनियादी ढांचे जैसे मुद्दों पर ध्यान दे रहे हैं। ‘नई राजनीति’ का नारा देने वाले इस नए चेहरे को इन मुद्दों पर ठोस रणनीति पेश करनी होगी, वरना वह केवल एक अस्थायी हलचल बनकर रह जाएगा। एक स्थानीय मतदाता ने कहा, “हमें अब नारे नहीं, काम चाहिए। अगर यह नया नेता केवल NDA के वोट काटता है, तो इसका फायदा लालू गठबंधन को ही होगा।”

बिहार की राजनीति में ‘नई राजनीति’ का दावा एक बार फिर चर्चा में है, लेकिन केजरीवाल के अनुभवों ने मतदाताओं को सतर्क कर दिया है। इस नए खिलाड़ी की मौजूदगी NDA के लिए चुनौती बन सकती है, जिसका अप्रत्याशित लाभ लालू प्रसाद यादव के गठबंधन को मिल सकता है। आने वाले दिन बिहार की सियासत में नए समीकरणों को जन्म दे सकते हैं, लेकिन मतदाता अब भरोसे के साथ-साथ परिणामों की भी उम्मीद कर रहे हैं।

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