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मोदी सरकार का ऐतिहासिक फैसला

74 साल पुराने UNMOGIP को 30 मिनट में भारत से बाहर किया

Published on: May 19, 2025
By: [BTI]
Location:New Delhi, India

भारत ने एक ऐतिहासिक और साहसिक कदम उठाते हुए संयुक्त राष्ट्र सैन्य पर्यवेक्षक समूह (UNMOGIP) को देश से बाहर का रास्ता दिखा दिया है। 1948 से भारत की धरती पर मौजूद यह संगठन, जिसे भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर विवाद पर निगरानी के लिए स्थापित किया गया था, पिछले 74 सालों से भारतीय संसाधनों का उपयोग करते हुए भारत के ही खिलाफ पक्षपातपूर्ण रवैया अपनाता रहा। लेकिन, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई वाली सरकार ने मात्र 30 मिनट में इस संगठन को भारत से निष्कासित कर एक नया इतिहास रच दिया।

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UNMOGIP का इतिहास और विवाद
संयुक्त राष्ट्र सैन्य पर्यवेक्षक समूह (UNMOGIP) की स्थापना 1948 में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव के तहत हुई थी। इसका उद्देश्य भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर में युद्धविराम की निगरानी करना था। हालांकि, समय के साथ इस संगठन पर भारत के खिलाफ पक्षपात करने और पाकिस्तान के प्रति नरम रुख अपनाने के आरोप लगने लगे। कई मौकों पर UNMOGIP की रिपोर्ट्स में भारत को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर घेरने की कोशिश की गई।
सबसे हैरानी की बात यह थी कि इस संगठन का खर्च—रहना, खाना, गाड़ियां, और अन्य सुविधाएं—भारत सरकार यानी भारतीय करदाताओं के पैसे से चल रहा था। यह स्थिति कई भारतीयों के लिए अस्वीकार्य थी, क्योंकि यह संगठन भारत की संप्रभुता और हितों के खिलाफ काम करता हुआ प्रतीत होता था।

मोदी सरकार का साहसिक कदम
विदेश मंत्री एस. जयशंकर की अगुवाई में भारत सरकार ने UNMOGIP को भारत से निष्कासित करने का फैसला लिया। सूत्रों के अनुसार, यह निर्णय एक उच्च-स्तरीय बैठक में मात्र 30 मिनट में लिया गया। इस कदम को लागू करने के लिए संगठन को तत्काल प्रभाव से भारत छोड़ने का आदेश दिया गया। इस फैसले ने न केवल भारत की दृढ़ता को दर्शाया, बल्कि यह भी स्पष्ट किया कि भारत अब अपनी संप्रभुता पर किसी भी तरह का समझौता नहीं करेगा।

सोशल मीडिया पर उत्साह
इस फैसले के बाद सोशल मीडिया, खासकर X प्लेटफॉर्म, पर भारतीयों ने इसे एक ऐतिहासिक क्षण बताया। एक यूजर ने लिखा, “74 साल का कलंक 30 मिनट में मिटा दिया। यह है नया भारत!” एक अन्य पोस्ट में कहा गया, “यह वही क्षण है, जैसे अंग्रेजों का आखिरी झंडा उतार दिया गया हो।” इन प्रतिक्रियाओं से साफ है कि जनता इस फैसले को भारत की स्वतंत्रता और आत्मसम्मान की जीत के रूप में देख रही है।

क्यों जरूरी था यह कदम?
UNMOGIP को निष्कासित करने का फैसला कई कारणों से महत्वपूर्ण है। पहला, यह संगठन कश्मीर मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर जीवित रखने का माध्यम बन चुका था, जबकि भारत इसे द्विपक्षीय मुद्दा मानता है। दूसरा, 2019 में जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाए जाने के बाद भारत ने स्पष्ट किया था कि कश्मीर उसका आंतरिक मामला है। ऐसे में UNMOGIP की मौजूदगी अप्रासंगिक हो चुकी थी। तीसरा, इस संगठन की गतिविधियां भारत के खिलाफ एक “विदेशी सेंसर बोर्ड” की तरह काम कर रही थीं, जो भारत की छवि को नुकसान पहुंचा रही थीं।

वैश्विक प्रतिक्रिया
इस फैसले पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय की प्रतिक्रियाएं अभी सामने आ रही हैं। कुछ विश्लेषकों का मानना है कि यह कदम भारत की बढ़ती वैश्विक ताकत और आत्मविश्वास का प्रतीक है। वहीं, कुछ देश इसे संयुक्त राष्ट्र के अधिकार क्षेत्र पर सवाल के रूप में देख सकते हैं। हालांकि, भारत ने हमेशा यह रुख अपनाया है कि कश्मीर भारत और पाकिस्तान के बीच का द्विपक्षीय मामला है, और इसमें किसी तीसरे पक्ष की जरूरत नहीं है।

आगे की राह
इस फैसले के बाद भारत ने एक बार फिर दुनिया को दिखा दिया है कि वह अपनी संप्रभुता और राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए किसी भी हद तक जा सकता है। यह कदम न केवल कश्मीर मुद्दे पर भारत के दृढ़ रुख को मजबूत करता है, बल्कि यह भी संदेश देता है कि भारत अब औपनिवेशिक मानसिकता से मुक्त होकर अपने फैसले स्वयं लेने में सक्षम है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और विदेश मंत्री एस. जयशंकर के इस साहसिक कदम की हर भारतीय सराहना कर रहा है। यह नया भारत अब अपने इतिहास के बोझ को उतारकर एक नई उड़ान भर रहा है, और UNMOGIP का निष्कासन इसका सबसे बड़ा प्रमाण है।

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