पहुंचे सुप्रीम कोर्ट
Published on: May 26, 2025
By: BTNI
Location: New Delhi, India
सुप्रीम कोर्ट की एक हालिया टिप्पणी ने वकील समुदाय में नाराजगी पैदा कर दी है, जिसके बाद
वकीलों के एक समूह ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। यह विवाद तब शुरू हुआ जब सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश (CJI) बी.आर. गवई की अगुवाई वाली एक बेंच ने सुनवाई के दौरान वकीलों की कार्यशैली पर टिप्पणी करते हुए कहा कि कुछ वकील छुट्टियों के दौरान काम नहीं करना चाहते और मामलों को अनावश्यक रूप से टालते हैं। इस टिप्पणी को वकील समुदाय ने अपने पेशे की गरिमा पर सवाल उठाने वाला माना, जिससे व्यापक असंतोष फैल गया।

सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन (SCBA) और अन्य वकील संगठनों ने इस बयान को “अनुचित और अपमानजनक” करार देते हुए इसे वकीलों के समर्पण और मेहनत का अपमान बताया। SCBA ने एक बयान जारी कर कहा, “वकील न्याय प्रणाली का अभिन्न हिस्सा हैं और ऐसी टिप्पणियां उनके योगदान को कमतर करती हैं।” संगठन ने इस मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट से औपचारिक माफी की मांग की है।
वकीलों का एक प्रतिनिधिमंडल आज सुप्रीम कोर्ट पहुंचा और CJI से मुलाकात कर अपनी आपत्ति दर्ज की। सूत्रों के अनुसार, वकीलों ने इस बात पर जोर दिया कि ऐसी टिप्पणियां न केवल उनके पेशे की छवि को धूमिल करती हैं, बल्कि न्यायिक प्रक्रिया में उनके महत्वपूर्ण योगदान को भी नजरअंदाज करती हैं। उन्होंने मांग की कि भविष्य में ऐसी टिप्पणियों से बचा जाए और अदालत वकीलों के साथ संवाद का एक बेहतर माहौल बनाए।
हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने अभी तक इस मामले पर कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया है। कुछ वरिष्ठ वकीलों का कहना है कि यह विवाद न्यायपालिका और बार के बीच संबंधों को प्रभावित कर सकता है, जो न्यायिक प्रणाली के सुचारू संचालन के लिए आवश्यक है। दूसरी ओर, कुछ का मानना है कि यह मुद्दा संवाद के माध्यम से सुलझाया जा सकता है।
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वकील समुदाय ने इस मामले में एकजुटता दिखाते हुए एक प्रस्ताव पारित किया है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट से इस तरह की टिप्पणियों पर दिशानिर्देश जारी करने की मांग की गई है ताकि भविष्य में ऐसी स्थिति से बचा जा सके। इस घटना ने सोशल मीडिया पर भी बहस छेड़ दी है, जहां कई वकीलों ने अपनी नाराजगी व्यक्त की है, जबकि कुछ ने इस मुद्दे पर संयम और संवाद की वकालत की है।
यह विवाद तब सामने आया है जब सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट की कार्यशैली पर भी सवाल उठाए थे, जिसमें एक मामले में 27 बार सुनवाई टालने को “अस्वीकार्य” बताया गया था। इस तरह के बयानों ने न्यायिक प्रक्रिया और वकीलों की भूमिका पर व्यापक बहस को जन्म दिया है।