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राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट को अपने अधिकार क्षेत्र को रिव्यू करने कहा और 14 महत्वपूर्ण प्रश्न भी उठाए

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संविधान के अनुच्छेद 143(1) के तहत सुप्रीम कोर्ट से राय मांगी, विधेयकों पर निर्णय की समयसीमा सहित 14 संवैधानिक सवाल किए गए पेश।

Published on: May 15, 2025
By: BTI
Location: New Delhi, India

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संविधान के अनुच्छेद 143(1) के तहत सुप्रीम कोर्ट से सलाह मांगी है, जिसमें 14 महत्वपूर्ण सवाल उठाए गए हैं। इनमें से एक प्रमुख सवाल यह है कि क्या सुप्रीम कोर्ट राज्यपालों और राष्ट्रपति को विधानसभाओं द्वारा पारित विधेयकों पर मंजूरी के लिए समयसीमा तय करने का निर्देश दे सकता है। यह कदम सुप्रीम कोर्ट के 8 अप्रैल 2025 के फैसले के बाद उठाया गया, जिसमें कोर्ट ने कहा था कि राष्ट्रपति को राज्यपालों द्वारा भेजे गए विधेयकों पर तीन महीने के भीतर निर्णय लेना होगा, और राज्यपालों को एक महीने के भीतर कार्रवाई करनी होगी।

Barbarika Truth News India-image= May 16, 2025

राष्ट्रपति का यह कदम मजबूरी के बजाय संवैधानिक स्पष्टता और कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्र की रक्षा के लिए प्रतीत होता है। सुप्रीम कोर्ट के उक्त फैसले पर उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भी आपत्ति जताई थी, इसे लोकतांत्रिक व्यवस्था के खिलाफ बताते हुए कहा था कि अदालतें राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकतीं। केंद्र सरकार भी इस फैसले पर पुनर्विचार याचिका दायर करने की तैयारी में है, क्योंकि यह कार्यपालिका के अधिकारों को प्रभावित कर सकता है।

राष्ट्रपति का सुप्रीम कोर्ट से सलाह मांगना संवैधानिक प्रक्रिया का हिस्सा है, जो अनुच्छेद 143 के तहत राष्ट्रपति को किसी भी कानूनी या संवैधानिक मुद्दे पर कोर्ट की राय लेने का अधिकार देता है। यह कदम संवैधानिक संस्थाओं के बीच शक्तियों के संतुलन को स्पष्ट करने और भविष्य में टकराव से बचने के लिए उठाया गया है, न कि केवल मजबूरी का परिणाम है।

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हालांकि, कुछ लोग इसे कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच तनाव के रूप में देख सकते हैं, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट का फैसला कार्यपालिका की स्वायत्तता पर सवाल उठाता है। दूसरी ओर, कोर्ट का तर्क था कि विधेयकों में देरी से विधायी प्रक्रिया और लोकतंत्र कमजोर होता है। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की अंतिम राय से यह स्पष्ट होगा कि क्या कोर्ट को ऐसी समयसीमा तय करने का अधिकार है या नहीं।
उल्लेखनीय है कि विगत् कुछ वर्षों से भारत की न्याय पालिकाओं ने बहुत ही ज्यादा सक्रियता दिखाई है और देश के अहम मसलों पर टिप्पणी करने लगी है। इस बात को लेकर 2014 याने कि केन्द्र में मोदी सरकार आने के बाद ज्यादा टकराहट देखने मिली है। भारतीय न्यायालय अपनी इन्ही प्राथमिकताओं के चलते देश की अदालतों में लंबित मामलों को घटाने के लिए ज्यादा कुछ नहीं कर पाया जो चिंतनीय है।
उप राष्ट्रपति जगदीश धनकर भी इस मामले में न्यायालय पर काफी उखडे उखडे से है और आए दिन जरुरी हुआ तो न्यायालय को आयना दिखाने का काम भी करते है। उन्हे आजकल उनके ऐसे ही अंदाज व उनकी साफगोई के लिए काफी लोग पसंद करने लगे है।

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