संजीरा देवी का साहसिक जवाब, “मैं हिंदुस्तानी हूँ, हिंदी बोलूँगी”, लेकिन क्या भाषा के नाम पर हिंसा अब हिंदुस्तान की पहचान बन रही है?
Published on: July 22, 2025
By: BTNI
Location: Mumbai, India
महाराष्ट्र के घाटकोपर इलाके में एक बार फिर भाषा को लेकर विवाद ने तूल पकड़ा है। एक वायरल वीडियो में देखा गया कि संजीरा देवी नाम की एक महिला को कुछ लोगों ने घेर लिया और उनसे मराठी में बोलने की मांग की। संजीरा ने साहस के साथ जवाब दिया, “मैं हिंदुस्तानी हूँ, हिंदी बोलूँगी। क्या आप हिंदुस्तानी नहीं हैं?” यह घटना 20 जुलाई, 2025 को हुई और अब यह पूरे देश में चर्चा का विषय बन गई है। इस घटना ने एक बार फिर सवाल उठाया है कि क्या भारत में अपनी मातृभाषा बोलना अब अपराध बनता जा रहा है?
घटना का विवरण
संजीरा देवी अपने घर के पास खड़ी थीं, जब कुछ लोगों ने उनका रास्ता रोका और मराठी में बात करने का दबाव डाला। वीडियो में एक व्यक्ति को चिल्लाते हुए सुना गया, “मराठी में बोलो, यह महाराष्ट्र है।” संजीरा ने जवाब दिया, “नहीं, तुम हिंदी में बोलो। क्या तुम हिंदुस्तानी नहीं हो?” इस घटना ने भीड़ को आकर्षित किया, और स्थिति तब तक बढ़ गई जब तक पुलिस को बुलाया नहीं गया। हालांकि, पुलिस के आने से पहले ही भीड़ तितर-बितर हो गई।
भाषाई गुंडागर्दी का बढ़ता सिलसिला
यह कोई पहली घटना नहीं है। हाल के हफ्तों में, महाराष्ट्र में हिंदी बोलने वालों के खिलाफ हिंसा की कई घटनाएँ सामने आई हैं। मिरा रोड में एक दुकानदार, बाबूलाल खिमजी चौधरी, को महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) के कार्यकर्ताओं ने कथित तौर पर इसलिए पीटा क्योंकि उनके कर्मचारी ने हिंदी में जवाब दिया। एक अन्य घटना में, विक्रोली में एक व्यापारी को मराठी समुदाय के खिलाफ कथित अपमानजनक टिप्पणी के लिए निशाना बनाया गया।
महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने इन घटनाओं की निंदा करते हुए कहा, “भाषा के नाम पर गुंडागर्दी बर्दाश्त नहीं की जाएगी। मराठी में गर्व करना गलत नहीं है, लेकिन हिंसा का सहारा लेना अस्वीकार्य है।” उन्होंने चेतावनी दी कि कानून को अपने हाथ में लेने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होगी।
हिंदुस्तानियों को क्या हो गया है?
यह सवाल अब हर हिंदुस्तानी के मन में उठ रहा है। हमारा देश, जो अपनी विविधता में एकता के लिए जाना जाता है, आज भाषा के नाम पर बँटता नजर आ रहा है। मराठी, कन्नड़, बंगाली—हर राज्य में स्थानीय भाषा बोलने का दबाव बढ़ रहा है। क्या यह हमारी सांस्कृतिक एकता को कमजोर करने की साजिश है? कुछ लोगों का मानना है कि यह आंतरिक मतभेद बढ़ाने के लिए बाहरी ताकतों द्वारा भेजे गए तत्वों का काम हो सकता है। यह विचार चिंता पैदा करता है कि क्या हमारी एकता को तोड़ने के लिए सुनियोजित प्रयास किए जा रहे हैं।
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क्या है इसका समाधान?
भाषा हमारी संस्कृति का हिस्सा है, लेकिन यह विभाजन का कारण नहीं बनना चाहिए। विशेषज्ञों का कहना है कि भाषाई विवाद अक्सर क्षेत्रीय और राजनीतिक संघर्षों से जुड़े होते हैं। भाषा को क्षेत्रीय अस्मिता और सत्ता के दावे के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। मराठी विद्वान डॉ. तारा भवालकर ने कहा, “मराठी भाषा का विकास शिक्षा और सांस्कृतिक संवर्धन से होना चाहिए, न कि हिंसा से।”
आगे की राह
महाराष्ट्र में भाषा विवाद ने राजनीतिक गलियारों को भी गर्म कर दिया है। उद्धव ठाकरे और राज ठाकरे की हालिया एकता और ‘मराठी अस्मिता’ के नाम पर रैली ने इस मुद्दे को और हवा दी है। लेकिन सवाल यह है कि क्या भाषा के नाम पर हिंसा और गुंडागर्दी को बढ़ावा देना उचित है? क्या हमारी सांस्कृतिक विविधता को हमारी ताकत के बजाय कमजोरी बनाया जा रहा है?
संजीरा देवी का जवाब एक प्रेरणा है कि हमें अपनी पहचान को गर्व के साथ अपनाना चाहिए, लेकिन दूसरों की भाषा और संस्कृति का भी सम्मान करना चाहिए। यह समय है कि हम हिंदुस्तानी के रूप में एकजुट हों और भाषा के नाम पर होने वाली गुंडागर्दी को खत्म करें। आखिर, हमारा देश ‘हिंदी, हिंदू, हिंदुस्तान’ का नारा देने वालों का नहीं, बल्कि ‘विविधता में एकता’ का प्रतीक है। आप इस मुद्दे पर क्या सोचते हैं? क्या भाषा के नाम पर हिंसा को जायज ठहराया जा सकता है?