राहुल गांधी के ‘वोट चोरी’ आरोपों पर PIL खारिज
- याचिकाकर्ता पर 1 लाख का जुर्माना –
- कांग्रेस को लगा जोरदार तमाचा!
- विदेशी ताकतों के साथ मिलकर देश की संस्थाओं पर कीचड़ उछालने का उनका पुराना तरीका अब बेनकाब हो चुका है।
- कई विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला लोकतंत्र की रक्षा के नाम पर अदालतों का दुरुपयोग रोकने की दिशा में एक मील का पत्थर है।
Published on: October 13, 2025
By: BTNI
Location: Chennai, India
देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था पर गंभीर सवाल खड़े करने वाली एक जनहित याचिका (PIL) को मद्रास हाईकोर्ट ने सिरे से खारिज कर दिया है। यह फैसला न केवल कांग्रेस नेता राहुल गांधी के उन विवादास्पद आरोपों पर करारा प्रहार है, जिनमें उन्होंने 2024 लोकसभा चुनावों में ‘वोट चोरी’ का डेमो देकर केंद्र सरकार और चुनाव आयोग पर इल्जाम लगाया था, बल्कि यह पूरे विपक्षी खेमे के लिए एक बड़ा सबक भी साबित हो रहा है। कोर्ट ने याचिकाकर्ता पर 1 लाख रुपये का भारी-भरकम जुर्माना लगाते हुए इसे ‘पूरी तरह भ्रामक और बिना सबूतों की’ करार दिया। यह फैसला कांग्रेस और राहुल गांधी के लिए एक जोरदार ‘तमाचा’ साबित हो रहा है, खासकर तब जब विदेशी ताकतों के साथ मिलकर देश की संस्थाओं पर कीचड़ उछालने का उनका पुराना तरीका अब बेनकाब हो चुका है।

घटनाक्रम: राहुल गांधी का पावरपॉइंट 'डेमो' और उसके बाद का हंगामा
सबसे पहले जरा घटनाक्रम को समझिए। 7 अगस्त 2025 को नई दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान कांग्रेस सांसद और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने एक पावरपॉइंट प्रेजेंटेशन के जरिए चुनाव आयोग पर ‘वोट चोरी’ के गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने दावा किया कि 2024 के लोकसभा चुनावों को ‘कोरियोग्राफ्ड’ (पूर्व-निर्धारित) तरीके से रचा गया था, जिसमें कर्नाटक के महादेवपुरा विधानसभा क्षेत्र में 1,00,250 वोटों की ‘चोरी’ हुई। राहुल ने कहा कि चुनाव आयोग ने भाजपा को फायदा पहुंचाने के लिए फर्जी वोटरों को लिस्ट में जोड़ा, जबकि असली वोटरों के नाम काटे गए। यह आरोप महाराष्ट्र और कर्नाटक जैसे राज्यों पर केंद्रित थे, और राहुल ने इसे ‘लोकतंत्र पर हमला’ बताते हुए चुनाव आयोग को ‘एंटी-इनकंबेंसी से इम्यून’ (अप्रभावित) बनाने का दोषी ठहराया।
इसके बाद 13 अगस्त को केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में इन आरोपों का खंडन किया, लेकिन विपक्ष ने हंगामा मचा दिया। इसी हंगामे के बीच एक याचिकाकर्ता ने मद्रास हाईकोर्ट में PIL दायर की, जिसमें चुनाव आयोग से इन आरोपों पर स्पष्टीकरण मांगा गया। याचिका में मांग की गई कि सभी निर्वाचन क्षेत्रों की वोटर लिस्ट मशीन-रीडेबल फॉर्मेट में सार्वजनिक की जाए, साथ ही आरोपों पर की गई जांच का स्टेटस रिपोर्ट पेश किया जाए। यह याचिका संविधान के अनुच्छेद 324 (चुनावों का संचालन), 14 (समानता) और 19(1)(अ) (अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता) का हवाला देकर दायर की गई थी, ताकि ‘पारदर्शिता और निष्पक्ष चुनाव’ सुनिश्चित हो।
कोर्ट का सख्त रुख: 'बिना सबूतों के राजनीतिक आरोपों पर आधारित'
मद्रास हाईकोर्ट की डिवीजन बेंच – चीफ जस्टिस मणिंद्र मोहन श्रीवास्तव और जस्टिस जी. अरुल मुरुगन – ने 10 सितंबर 2025 को इस PIL को ‘पूरी तरह भ्रामक’ (completely misconceived) बताते हुए खारिज कर दिया। कोर्ट ने साफ कहा कि याचिका में कोई ठोस सामग्री या सबूत नहीं है। यह महज राहुल गांधी के पावरपॉइंट और अनुराग ठाकुर के प्रेस कॉन्फ्रेंस जैसे ‘कुछ प्लेटफॉर्म्स पर आरोप-प्रत्यारोप’ पर टिकी हुई है। बेंच ने टिप्पणी की, “याचिका अस्पष्ट है, सामग्री की कमी है, सबूतों का अभाव है और यह केवल राजनीतिक दावों पर आधारित है।” कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि PIL के खारिज होने का मतलब आरोपों की पुष्टि नहीं है – चुनाव आयोग स्वतंत्र रूप से फैसला ले सकता है। लेकिन याचिकाकर्ता को सबक सिखाने के लिए 1 लाख रुपये का जुर्माना लगाया गया, जो तमिलनाडु स्टेट लीगल सर्विसेज अथॉरिटी को जमा करना होगा।

मद्रास हाईकोर्ट के इस फैसले की गूंज पूरे देश में है। कई विशेषज्ञों का मानना है कि यह फैसला लोकतंत्र की रक्षा के नाम पर अदालतों का दुरुपयोग रोकने की दिशा में एक मील का पत्थर है।
यह फैसला कांग्रेस के लिए पहले से नीम और उस पर भी करेला जैसा साबित हो रहा है क्योंकि जनमानस के अनुसार यह कांग्रेस के मुंह पर एक जोरदार तमाचा’ “राहुल गांधी और उनके साथी अब ‘गिनती के टाइप’ के लोग बचे हैं, जो नकारात्मकता फैला रहे हैं। विदेश में बैठे-बिठाए लंदन से देशभक्ति का ढोंग कर रहे हैं, लेकिन देश, राष्ट्र, हिंदुत्व या संस्कृति से उनका कोई लेना-देना नहीं। दुनिया भर की सारी बुराइयां भारत पर थोपने का उनका धंधा अब पोल खोल चुका है।
जनता की प्रतिक्रिया: लोकतंत्र पर सवाल या राजनीतिक स्टंट?
यह फैसला देश की 90 करोड़ वोटरों के लिए एक संदेश है – आरोप लगाना आसान है, लेकिन सबूतों के बिना अदालतें ऐसे दावों को बर्दाश्त नहीं करेंगी। विपक्ष के कई नेता चुप हैं, लेकिन भाजपा ने इसे ‘लोकतंत्र की जीत’ बताया। एक सर्वे में 65% लोग मानते हैं कि राहुल के आरोप राजनीतिक लाभ के लिए थे, न कि लोकहित के। अब सवाल यह है – क्या कांग्रेस इस ‘तमाचे’ से सबक लेगी, या फिर विदेशी मंचों से नया ड्रामा रचेगी?
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यह फैसला न केवल चुनाव व्यवस्था पर भरोसा बहाल करता है, बल्कि उन तत्वों को चेतावनी भी देता है जो संस्थाओं को बदनाम करने की कोशिश करते हैं। हिंदुस्तान की जनता अब जाग चुकी है – ‘वोट चोरी’ का नारा अब ‘नकारात्मकता चोरी’ बन चुका है। अधिक अपडेट्स के लिए बने रहें।