बूथ नंबर 1 के ग्राम प्रधान का दावा, मतदाता सूची में गड़बड़ी की उठी मांग
Published on: July 26, 2025
By: BTNI
Location: Bihar, India
बिहार के खेसरिया विधानसभा के बूथ नंबर 1 के गांव से एक सनसनीखेज खबर सामने आई है। गांव के प्रधान ने दावा किया है कि उनके गांव में एक भी मुस्लिम निवासी नहीं है, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से मतदाता सूची में 40 मुस्लिम व्यक्तियों के नाम दर्ज हैं। यह खुलासा स्थानीय स्तर पर हंगामा मचा रहा है और मतदाता सूची की विश्वसनीयता पर सवाल उठा रहा है।ग्राम प्रधान के अनुसार, गांव में कोई मुस्लिम परिवार नहीं रहता, फिर भी वोटर लिस्ट में इन नामों की मौजूदगी ने सभी को हैरान कर दिया है। उन्होंने इस मामले में जांच की मांग की है ताकि यह पता लगाया जा सके कि ये नाम कैसे और क्यों शामिल किए गए। यह मामला न केवल स्थानीय निवासियों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है, बल्कि राजनीतिक हलकों में भी इसकी गूंज सुनाई दे रही है।
चुनाव आयोग पर दबाव:इस खुलासे ने चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़े किए हैं। मतदाता सूची में ऐसी अशुद्धियां न केवल चुनावी प्रक्रिया की पारदर्शिता को प्रभावित करती हैं, बल्कि मतदाताओं के बीच अविश्वास भी पैदा करती हैं। स्थानीय लोग अब बूथ लेवल ऑफिसर्स (BLOs) और जिला प्रशासन से इस मामले की गहन जांच की मांग कर रहे हैं।
स्थानीय प्रतिक्रियाएं:गांव के निवासियों का कहना है कि यह पहली बार नहीं है जब मतदाता सूची में गड़बड़ियां सामने आई हैं, लेकिन इस बार का मामला अभूतपूर्व है। कुछ लोगों ने इसे जानबूझकर की गई साजिश का हिस्सा बताया, जबकि अन्य का मानना है कि यह प्रशासनिक लापरवाही का नतीजा हो सकता है। ग्राम प्रधान ने इस मामले को उच्च अधिकारियों तक पहुंचाने का फैसला किया है ताकि भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोका जा सके।
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आगे की राह:यह मामला बिहार में आगामी चुनावों से पहले मतदाता सूची की शुद्धता को लेकर एक बड़ी बहस छेड़ सकता है। चुनाव आयोग ने हाल ही में अवैध प्रवासियों के नाम हटाने के लिए विशेष सघन संशोधन (SIR) अभियान शुरू किया है, और इस घटना ने इस अभियान की प्रासंगिकता को और बढ़ा दिया है। स्थानीय प्रशासन से अपेक्षा है कि वह इस मामले की तह तक जाए और मतदाता सूची को दुरुस्त करे।
निष्कर्ष:खेसरिया विधानसभा के इस गांव का यह मामला लोकतंत्र के लिए एक चेतावनी है। मतदाता सूची में ऐसी गड़बड़ियां न केवल चुनावी प्रक्रिया की निष्पक्षता पर सवाल उठाती हैं, बल्कि लोगों के विश्वास को भी कमजोर करती हैं। यह समय है कि प्रशासन इस मामले को गंभीरता से ले और पारदर्शी जांच के माध्यम से सच्चाई को सामने लाए।