यूपीआई पर जीमेल या क्लाउड की निर्भरता नहीं, एनपीसीआई के स्वदेशी डेटा सेंटर रखते हैं व्यवस्था दुरुस्त
Published on: September 03, 2025
By: BTNI
Location: Patna, India
मशहूर शिक्षक और यूट्यूबर खान सर ने हाल ही में एक बयान देकर हलचल मचा दी, जिसमें उन्होंने कहा, “अगर ट्रम्प ने भारत में जीमेल बंद कर दिया, तो यूपीआई कैसे चलेगा?” उनके इस बयान पर तकनीकी विशेषज्ञों ने तीखी प्रतिक्रिया दी है, इसे “अफवाह” और “तथ्यहीन” करार देते हुए। विशेषज्ञों ने साफ किया कि यूपीआई का संचालन जीमेल, अमेजन वेब सर्विसेज (AWS), गूगल क्लाउड प्लेटफॉर्म (GCP) या माइक्रोसॉफ्ट एज्योर जैसे पब्लिक क्लाउड पर निर्भर नहीं है।
नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एनपीसीआई), जो यूपीआई का संचालन करता है, अपने स्वदेशी डेटा सेंटर्स पर निर्भर है। तकनीकी विशेषज्ञों के अनुसार, एनपीसीआई के पास मजबूत बुनियादी ढांचा है, जिसमें मुंबई और चेन्नई में प्राइमरी और सेकेंडरी डेटा सेंटर्स शामिल हैं। ये डेटा सेंटर्स यूपीआई के 20 अरब मासिक लेनदेन को संभालने में सक्षम हैं, जो 2025 में 25 ट्रिलियन रुपये से अधिक के लेनदेन को सपोर्ट करते हैं। एक साइबर सुरक्षा विशेषज्ञ ने कहा, “खान सर का बयान तकनीकी रूप से गलत है।
यूपीआई का कोर सिस्टम पूरी तरह स्वदेशी है और किसी भी विदेशी क्लाउड सेवा पर निर्भर नहीं है। जीमेल जैसी सेवाएं केवल कुछ यूपीआई ऐप्स में लॉगिन या नोटिफिकेशन के लिए इस्तेमाल होती हैं, लेकिन कोर ट्रांजेक्शन सिस्टम पर इसका कोई असर नहीं पड़ता।” उन्होंने आगे कहा कि अगर जीमेल या पब्लिक क्लाउड सेवाएं रातोंरात बंद भी हो जाएं, तो यूपीआई का संचालन निर्बाध रूप से जारी रहेगा।खान सर के इस बयान ने सोशल मीडिया पर बहस छेड़ दी है, जहां कुछ लोग उनके दावे को “हास्यास्पद” बता रहे हैं, तो कुछ उनके समर्थन में तर्क दे रहे हैं। ए
क यूजर ने कहा, “खान सर ने शायद जल्दबाजी में बयान दे दिया। यूपीआई भारत की डिजिटल ताकत का प्रतीक है, इसे इतना कमजोर समझना गलत है।” एनपीसीआई के एक प्रवक्ता ने स्पष्ट किया, “यूपीआई का बुनियादी ढांचा पूरी तरह आत्मनिर्भर है। हमारे डेटा सेंटर्स और बैकअप सिस्टम यह सुनिश्चित करते हैं कि लेनदेन में कोई रुकावट न आए।” उन्होंने यह भी बताया कि यूपीआई के लिए डेटा स्थानीयकरण नियमों का पालन किया जाता है, जिसके तहत सारा डेटा भारत में ही स्टोर होता है।
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इस बीच, खान सर के बयान ने डिजिटल भारत की तकनीकी ताकत पर चर्चा को तेज कर दिया है। विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे समय में जब भारत डिजिटल अर्थव्यवस्था में अग्रणी बन रहा है, अफवाहों और गलत सूचनाओं से बचना जरूरी है। खान सर के समर्थकों का कहना है कि उनका मकसद लोगों को जागरूक करना था, लेकिन विशेषज्ञों ने सलाह दी है कि तकनीकी मुद्दों पर बोलने से पहले तथ्यों की जांच जरूरी है। क्या खान सर का यह बयान केवल एक चूक था या जानबूझकर सुर्खियां बटोरने की कोशिश? यह सवाल बहस का विषय बना हुआ है। लेकिन एक बात साफ है—यूपीआई भारत की डिजिटल रीढ़ है, और इसे रोकना इतना आसान नहीं है।