धनखड़ साहब का बयान, “RSS राष्ट्रवादी संगठन है, इसे नफरत क्यों?”, ने छेड़ी बहस; क्या भाषाई विवादों के बीच संघ की भूमिका को गलत समझा जा रहा है?
Published on: July 22, 2025
By: BTNI
Location: New Delhi, India
हाल ही में पूर्व उपराष्ट्रपति धनखड़ साहब ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की सदस्यता को लेकर एक सवाल उठाया, जो अब देश भर में चर्चा का विषय बन गया है। उन्होंने कहा, “RSS की सदस्यता को अपराध कैसे माना जा सकता है? RSS एक राष्ट्रवादी संगठन है, जो राष्ट्र निर्माण में योगदान दे रहा है, और आप इसे नफरत करते हैं?”
यह बयान ऐसे समय में आया है, जब महाराष्ट्र में भाषाई विवादों ने जोर पकड़ा है, और कुछ लोग RSS को सांप्रदायिक और विभाजनकारी संगठन के रूप में देखते हैं। धनखड़ साहब के इस बयान ने न केवल RSS की भूमिका पर सवाल उठाए हैं, बल्कि यह भी विचार करने को मजबूर किया है कि क्या भारत में भाषाई और सांस्कृतिक विवादों के पीछे कोई सुनियोजित साजिश है?
धनखड़ साहब का बयान और उसका संदर्भ
धनखड़ साहब, जो अपनी स्पष्टवादिता और राष्ट्रीय मुद्दों पर साहसिक रुख के लिए जाने जाते हैं, ने RSS के योगदान को रेखांकित करते हुए कहा कि यह संगठन 1925 से सामाजिक और सांस्कृतिक क्षेत्र में काम कर रहा है। उन्होंने जोर देकर कहा कि RSS ने शिक्षा, सामाजिक सेवा, और प्राकृतिक आपदाओं के समय समाज को एकजुट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उनके इस बयान ने उन लोगों को जवाब दिया, जो RSS को केवल एक सांप्रदायिक संगठन के रूप में देखते हैं। धनखड़ साहब ने यह भी कहा कि उनकी जगह लेना आसान नहीं होगा, जिससे उनके प्रशंसकों में उनके प्रति सम्मान और बढ़ गया है।

महाराष्ट्र में भाषाई विवाद और RSS का कनेक्शन
हाल ही में महाराष्ट्र में भाषाई गुंडागर्दी की घटनाएँ सामने आई हैं, जहाँ हिंदी बोलने वालों को निशाना बनाया गया। एक घटना में, संजीरा देवी ने जब मराठी बोलने के दबाव का विरोध करते हुए कहा, “मैं हिंदुस्तानी हूँ, हिंदी बोलूँगी,” तो यह सवाल उठा कि क्या भारत में अपनी मातृभाषा बोलना अब अपराध बन रहा है? कुछ लोग इस तरह की घटनाओं के लिए RSS और उसकी सहयोगी संगठनों को जिम्मेदार ठहराते हैं, यह दावा करते हुए कि वे क्षेत्रीय और सांप्रदायिक अस्मिता को बढ़ावा देते हैं।
हालांकि, RSS समर्थक तर्क देते हैं कि संगठन का उद्देश्य हिंदू समाज को एकजुट करना और राष्ट्र निर्माण करना है, न कि विभाजन पैदा करना। RSS की वेबसाइट के अनुसार, संगठन 58,964 मंडलों और 44,055 बस्तियों में सामाजिक उत्सवों, एकता और पंच परिवर्तन (पाँच परिवर्तनों) पर चर्चा करता है। इसके अलावा, सामाजिक सद्भाव बैठकों के माध्यम से समाज में एकता को बढ़ावा देने का दावा किया जाता है।
क्या हिंदुस्तानियों को बाँटने की साजिश?
कई लोगों का मानना है कि भारत में बढ़ते भाषाई और सांस्कृतिक विवादों के पीछे बाहरी ताकतों की साजिश हो सकती है, जो देश की एकता को कमजोर करना चाहती हैं। यह विचार उठता है कि क्या मराठी, कन्नड़, या बंगाली जैसी स्थानीय भाषाओं को थोपने का दबाव एक सुनियोजित प्रयास का हिस्सा है? धनखड़ साहब के बयान ने इस बहस को और हवा दी है कि RSS जैसे संगठन, जो राष्ट्रवाद और सांस्कृतिक एकता की बात करते हैं, को गलत तरीके से निशाना बनाया जा रहा है। उनके समर्थकों का कहना है कि RSS ने हमेशा सामाजिक सेवा और राष्ट्रीय एकता के लिए काम किया है, जैसे कि प्राकृतिक आपदाओं में राहत कार्य और शिक्षा के क्षेत्र में योगदान।
आलोचनाओं का जवाब और भविष्य की दिशा
RSS की आलोचना करने वाले इसे सांप्रदायिक और कट्टरपंथी संगठन मानते हैं। कुछ का दावा है कि RSS की विचारधारा, जिसे हिंदुत्व के नाम से जाना जाता है, अल्पसंख्यकों के खिलाफ भेदभाव को बढ़ावा देती है। फिर भी, RSS समर्थक तर्क देते हैं कि संगठन ने दलितों और पिछड़े वर्गों के उत्थान के लिए काम किया है, जैसे कि विश्व हिंदू परिषद द्वारा दलितों को मंदिरों में पुजारी बनाने की पहल।
धनखड़ साहब का बयान इस बहस को नई दिशा देता है कि क्या RSS को केवल सांप्रदायिक संगठन के रूप में देखना उचित है, या इसका राष्ट्र निर्माण में योगदान भी मान्यता योग्य है? उनके बयान ने यह भी सवाल उठाया कि क्या भाषाई विवाद जैसे मुद्दों का इस्तेमाल देश में आंतरिक मतभेद बढ़ाने के लिए किया जा रहा है।
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निष्कर्ष
धनखड़ साहब का यह बयान न केवल RSS की भूमिका पर प्रकाश डालता है, बल्कि यह भी सोचने पर मजबूर करता है कि क्या भारत की सांस्कृतिक और भाषाई विविधता को एकता के बजाय विभाजन का हथियार बनाया जा रहा है? क्या यह समय नहीं है कि हम हिंदुस्तानी के रूप में एकजुट हों और भाषा के नाम पर होने वाली गुंडागर्दी और वैमनस्य को खत्म करें? धनखड़ साहब का यह साहसिक बयान निश्चित रूप से देश में एक नई बहस को जन्म देगा।