धर्म नगरी उज्जैन में भगवान महादेव की सवारी में जनजातीय कलाकारों की मनमोहक प्रस्तुतियाँ, क्या यह भारत की एकता और विविधता का प्रतीक है?
Published on: July 22, 2025
By: BTNI
Location: Ujjain, India
श्रावण मास के द्वितीय सोमवार, 21 जुलाई 2025, को धर्म नगरी उज्जैन में बाबा महाकाल की भव्य और दिव्य सवारी का आयोजन हुआ, जिसमें लाखों श्रद्धालुओं को इस पावन अवसर पर शामिल होने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। यह सवारी न केवल भक्ति और आस्था का प्रतीक बनी, बल्कि भारतीय लोक परंपराओं, सांस्कृतिक विविधता और सर्वसमावेशिता का एक अनुपम उदाहरण भी प्रस्तुत किया। इस अवसर पर स्थानीय और अन्य राज्यों से आए जनजातीय कलाकारों की मनमोहक प्रस्तुतियों ने सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया। यह आयोजन एक बार फिर यह सवाल उठाता है कि क्या भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक एकता ही हमारी सबसे बड़ी ताकत है, खासकर तब जब देश में भाषाई और सांस्कृतिक विवाद सुर्खियों में हैं?
बाबा महाकाल की सवारी: श्रद्धा का महोत्सव
उज्जैन, जो प्राचीन काल से ही भारत की आध्यात्मिक राजधानी के रूप में विख्यात है, में श्रावण मास के प्रत्येक सोमवार को बाबा महाकाल की सवारी निकाली जाती है। इस बार द्वितीय सोमवार को आयोजित सवारी में भगवान महादेव का रथ शहर के प्रमुख मार्गों से गुजरा, जिसमें हजारों श्रद्धालु शामिल हुए। मंदिर परिसर को फूलों और रंग-बिरंगे झंडों से सजाया गया था, और भक्तों ने “जय श्री महाकाल” के जयघोष के साथ अपनी आस्था व्यक्त की। सवारी में शामिल रथ, जिसे भगवान महाकाल की पालकी के रूप में सजाया गया था, श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र रहा।
जनजातीय कलाकारों की प्रस्तुतियाँ: संस्कृति की जीवंतता
इस सवारी की खासियत रही विभिन्न राज्यों से आए जनजातीय कलाकारों की मनमोहक प्रस्तुतियाँ। मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, और झारखंड के कलाकारों ने पारंपरिक नृत्य, संगीत, और लोक कला के माध्यम से भगवान शिव की महिमा का गुणगान किया। मालवा की मशहूर ‘राई’ नृत्य, बस्तर की जनजातीय ‘मंडला’ प्रस्तुति, और राजस्थानी ‘घूमर’ ने दर्शकों को भावविभोर कर दिया। इन प्रस्तुतियों ने यह दर्शाया कि भगवान शिव की सर्वसमावेशिता न केवल धार्मिक, बल्कि सांस्कृतिक एकता का भी प्रतीक है। एक स्थानीय दर्शक, रमेश सोलंकी, ने कहा, “यह सवारी केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि हमारी सांस्कृतिक धरोहर का उत्सव है।”
भाषाई विवादों के बीच एकता का संदेश
यह आयोजन ऐसे समय में हुआ है, जब देश में भाषाई और सांस्कृतिक विवाद चर्चा में हैं। महाराष्ट्र में हिंदी बोलने वालों पर हमले और संजीरा देवी जैसे लोगों का साहसिक जवाब, “मैं हिंदुस्तानी हूँ, हिंदी बोलूँगी,” ने सवाल उठाया है कि क्या भारत की सांस्कृतिक एकता को कमजोर करने की साजिश हो रही है? कुछ लोग मानते हैं कि भाषा और क्षेत्र के नाम पर होने वाले विवाद बाहरी ताकतों द्वारा प्रायोजित हो सकते हैं, जो भारत की एकता को तोड़ना चाहते हैं। ऐसे में, उज्जैन की यह सवारी एक संदेश देती है कि भगवान महादेव की भक्ति और भारतीय संस्कृति की विविधता हमें एकजुट करती है।
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महाकाल का आशीर्वाद: सत्य, कल्याण और सृजन
बाबा महाकाल, जिन्हें सत्य, कल्याण और सृजन का प्रतीक माना जाता है, की सवारी में शामिल होने वाले श्रद्धालु इस आयोजन को केवल धार्मिक उत्सव ही नहीं, बल्कि सामाजिक एकता का प्रतीक भी मानते हैं। मंदिर के पुजारी पंडित श्याम शर्मा ने कहा, “महादेव का आशीर्वाद समस्त चराचर जगत के लिए है। यह सवारी हमें सिखाती है कि हमारी विविधता ही हमारी शक्ति है।”
आगे की राह
उज्जैन की यह सवारी न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत हमें एकजुट करने की शक्ति रखती है। जब देश में भाषाई और सांस्कृतिक मतभेदों को हवा दी जा रही हो, तब बाबा महाकाल की सवारी जैसे आयोजन हमें याद दिलाते हैं कि हमारी एकता हमारी सबसे बड़ी ताकत है। यह समय है कि हम अपनी विविधता को गले लगाएँ और भाषा, धर्म, या क्षेत्र के नाम पर होने वाले विवादों को समाप्त करें|